Last Updated: Friday, June 22, 2012, 17:03

ज़ी न्यूज ब्यूरो
मुंबई: कुणाल कोहली बॉलीवुड के मंझे हुए निर्देशक माने जाते हैं। लेकिन इस बार वह हम-तुम और फना का रंग रोमांस के इस रंग यानी तेरी मेरी कहानी फिल्म में नहीं बिखेर पाए है।
इस बार कुणाल ने सबसे अलग एक नये अंदाज में अपनी फिल्म को बनाया है। एक ही फिल्म में तीन कहानी यानी एक ही जोड़ी की तीन अलग अलग दशकों की प्रेम कहानी। या फिर यूं कहे तो एक फिल्म के जरिए तीन का मजा। बस फिल्म का रोमांचक पहलू ये है कि ये तीनों प्रेम कहानियां किस तरह से एक दूसरे से जुड़ी हैं।
फिल्म की कहानी शुरु होती है 1910 के दशक से। इस दशक में कहानी है पंजावी लड़की आराधना और मुस्लिम लड़के जावेद की। जावेद एक कवि है और दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं।
दूसरे दशक यानी 1960 में शाहिद कपूर एक संघर्षरत संगीतकार गोविंद की भूमिका निभाएंगे और प्रियंका एक अभिनेत्री रुख्सार के किरदार में नज़र आएंगी। प्रियंका ने इसमें यूपी की राजधानी लखनऊ शहर की लड़की बनी हैं जो अपनी दोस्त के साथ घर से भाग जाती है ताकि फिल्म इंडस्ट्री में अपना करियर बना सके। इस दशक में प्राची देसाई भी एक मार्डन लड़की का किरदार निभाएंगी।
फिल्म में आखिरी दशक यानि वर्तमान साल यानी 2012 में शाहिद और प्रियंका इंग्लैंड में राधा और कृष के किरदारों में नजर आते है। दोनों एक दूसरे से मिलते हैं और दोनों के बीच प्यार हो जाता है।
यह फिल्म रोमांटिक है। एक जोड़ी को तीन अलग-अलग रुप में दिखाया गया है। फिल्म खालिस रोमांटिक है, यानी अच्छे संगीत, खूबसूरत देसी-विदेशी लोकेशन लेकिन फिल्म को जोरदार तरीके से पेश नहीं किया गया है। फिल्म की स्किप्ट लचर है और कई बार फिल्म अपने मूल विषय से भटकती हुई मालूम होती है।
फिल्म का निर्देशन कमजोर है। जैसे ही दर्शक फिल्म से जुड़ने की कोशिश करने लगता है तभी अचानक दूसरा दौर शुरू हो जाता है। फिल्म में पीरियड इतनी तेजी से बदलता है कि दर्शक के लिए उसे पचाना काफी मुश्किल हो जाता है। साजिद-वाजिद का संगीत शायद आपको पसंद आएगी। तीन दौर की अलग-अलग धुनें पिरोई गई है। फिल्म में शाहिद और प्रियंका की जोड़ी अच्छी लगी है लेकिन पर्दे पर यह जोड़ी बहुत नहीं जमी है।
कुल मिलाकर यह फिल्म एक बार तो देखी ही जा सकती है।
First Published: Friday, June 22, 2012, 17:03