Last Updated: Friday, April 12, 2013, 20:27
ज़ी न्यूज ब्यूरो मुंबई: ‘नौटंकी साला’ फिल्म कुछ रोचक दृश्यों को लेकर खींची गई लगती है। लेकिन यह फिल्म जबरन खींची गई मालूम होती है। लीड रोल में बेहतर नौटंकीबाजों के होने के बावजूद रोहन सिप्पी की फिल्म बरसों पुराने प्लॉट के कारण पसंद नहीं आती है। फिल्म कुछ मायनों में प्रभावित तो करती है लेकिन कुल मिलाकर यह बिखरी हुई नजर आती है।
इस फिल्म में आयुष्मान खुराना मुख्य किरदार में है। आर.पी.राम परमार (आयुष्मान खुराना) थिएटर बैकग्रांउड से है। आरपी का ताल्लुक मध्यम वर्ग से है इसलिए वह किसी का दर्द नहीं देख पाता है। दोस्तों की मदद के लिए हमेशा तैयार आरप. की मुलाकात मंदाल लेने यानी कुणाल राय कपूर से होती है। फिल्म की कहानी आगे बढ़ी है। आरपी और मंदाल अच्छे दोस्त बनते है और कई बार दरार भी आती है। कहानी मे मंदाल का नंदिनी (पूजा साल्वी) से ब्रेकअप और एवलिन शर्मा का खुद को अपेक्षित महसूस करना भी है। इसी तरह कहानी कई सिरों और नौटंकीबाजों के साथ आगे बढ़ती है।
इसमें कोई शक नहीं कि फिल्म को अलग बनाने की कोशिश की गई है, लेकिन अपनी गति से चलते कुछ सीन फिल्म को ढीला बना देते हैं। असल जिंदगी को रामायण के पन्नों में ढूंढते निर्देशक ने एक नई बात तो सामने रखी है, लेकिन फायदा तब होगा, जब दर्शक इसे समझ पाएं।
अगर अभिनय की बात करें तो आयुष्मान अपने किरदार में फिट बैठे है। दिल्ली के टिपिकल पंजाबी मुंडे का किरदार निभाना आयुष्मान के लिए आसान था। लेकिन आयुष्मान आलोचकों की उम्मीद पर खरे उतरे है। आयुष्मान ने बता दिया है कि उनमें वैरिएशन है और वह हर प्रकार की भूमिका अदा कर सकते हैं। कुणाल राय कपूर भी खूब जमे हैं। पूजा साल्वी और एलवन शर्मा की अदाकारी भी ठीक-ठाक है।
संगीत पक्ष की बात करें तो अस्सी नब्बे के दशक के कई सुपर हिट गानों को कुछ अलग स्टाइल में ऐसे असरदार ढंग से पेश किया गया है जो अच्छा लगता है। यह फिल्म कहीं से भी प्रभावित नहीं करती और कुल मिलाकर समय की बर्बादी नजर आती है। लेकिन खुद को रिलैक्स करने की चाहत हो तो यह फिल्म एक बार सिनेमा हॉल में जाकर देखी जा सकती है।
First Published: Friday, April 12, 2013, 16:51