मीडिया के सच से कोसों दूर है फिल्म ‘रश’

मीडिया के सच से कोसों दूर है फिल्म ‘रश’

मीडिया के सच से कोसों दूर है फिल्म ‘रश’ज़ी न्यूज ब्यूरो

नई दिल्ली : अभिनेता इमरान हाशमी की फिल्म ‘रश’ मीडिया की कार्यशैली को आधार बनाकर तैयार की गई है। इस फिल्म में मीडिया खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया की आंतरिक हलचलों एवं गतिविधियों को दिखाने की कोशिश की गई है।

फिल्म देखने से सवाल उठता है कि मीडिया जैसे गंभीर विषय पर क्या इस तरह की हल्की फिल्म बनाई जा सकती है। या मीडिया को केंद्र में रखकर इमरान हाशमी की इमेज को भुनाने की कोशिश की गई है।

फिल्म की कहानी चार किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है। सैम ग्रोवर (इमरान हाशमी) एक तेज-तर्रार रिपोर्टर है। उसका टॉक शो सनसनीखेज चीजें दिखाता है। यही वजह है कि उसके शो की टीआरपी काफी ज्यादा रहती है। न केवल सैम का शो, बल्कि दर्शकों में भी उसकी प्रसिद्धि बहुत है। लेकिन किसी को इस बात का अंदाजा ही नहीं होता कि सैम की यही प्रसिद्धि एक दिन उसकी दुश्मन बन जाएगी।

इसी दौरान मीडिया इंडस्ट्री के एक बड़े व्यवसायी रॉजर खन्ना (आदित्य पंचोली) जैसा खास किरदार अपने असली रंग में दिखाई देने लगता है। बड़ी आसानी से रहस्यों की परतों के बीच एक चुनिंदा स्टोरी करने वाला सैम एक बड़े काम के लिए निकल पड़ता है। लेकिन उसे नहीं पता होता कि उसका यही कार्य उसे मुसीबत में फंसा देगा।

अपराध की जड़ों तक पहुंचते-पहुंचते सैम खुद अपराध के घेरे में आ जाता है, जिससे निकलना नामुमकिन होता है।
एक मीडियाकर्मी तो दूर की बात है, एक आम दर्शक भी इस फिल्म के आने वाले दृश्यों के बारे में आसानी से कयास लगा सकता है। दरअसल, फिल्म में मीडिया की पृष्ठभूमि के बीच एक थ्रिलर स्टोरी को डाला गया है, जिसका मीडिया के कामकाज और वास्तविकता से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है।

फिल्म में तेजी है, कहानी में घुमाव भी हैं, लेकिन ये तेजी और घुमाव रोचकता पैदा नहीं करते। फिल्म में दृश्य बेतरतीब रखे गए हैं और संवादों पर भी ठीक से काम नहीं किया गया है। यहां तक कि बिना किसी समझ के कुछ दृश्यों को जबरन रखा गया है।

इमरान ने एक खराब पटकता पर अपनी तरफ से बेहतर अभिनय करने की कोशिश की है। इमरान की थ्रिलर फिल्मों में संगीत अच्छा होता है और पटकथा में गतिशीलता होती है लेकिन इस फिल्म में सारी खामियां हैं।

दिबाकर बनर्जी की ‘शंघाई’ जैसी फिल्म करने के बाद इमरान ने ‘रश’ जैसी कमजोर फिल्म चुनी है, इस पर हैरानी होती है। क्योंकि एक अभिनेता जैसे-जैसे अपने अभिनय में परिपक्व होता है, वह चुनिंदा फिल्में करना लगता है लेकिन इमरान ने ऐसा नहीं किया है।

वहीं, नेहा धूपिया की अगर बात करें तो वह हॉट दिखी हैं। नेहा को कभी उनके अभिनय के लिए सराहना नहीं मिली है और मसाले के तौर पर उन्हें फिल्म में रखा गया है। इसके अलावा सागरिका घोष भी दर्शकों पर कोई प्रभाव छो़ड़ने में नाकाम रही हैं। जबकि आदित्य पांचोली कहीं-कहीं आकर्षित कर पाए हैं।

फिल्म किसी भी लिहाज से देखने लायक नहीं है। इमरान हाशमी में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को भी यह फिल्म निराशा करेगी। उम्मीद है कि फिल्म के निर्देशक शमिन देसाई अपनी इस फिल्म से सबक लेंगे और आगे इस तरह की कमजोर फिल्म दर्शकों के सामने रखने से परहेज करेंगे।

First Published: Sunday, October 28, 2012, 14:16

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