सामाजिक मुद्दों के फिल्मकार थे वी शांताराम - Zee News हिंदी

सामाजिक मुद्दों के फिल्मकार थे वी शांताराम

वी शांताराम की पुण्यतिथि 30 अक्तूबर पर

 

नई दिल्ली: हिंदी फिल्म उद्योग के विकास के शुरूआती दौर से ही उसमें सक्रिय वी शांताराम ऐसे फिल्मकार थे जिन्होंने सामाजिक परिवर्तन के माध्यम के रूप में इस विधा की क्षमताओं को पहचाना और अपनी कृतियों में मानवता की वकालत करते हुए समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने की जरूरत पर बल दिया।

 

 

करीब छह दशक लंबे फिल्मी सफर में शांताराम ने कई सामाजिक और उद्देश्यपरक फिल्में बनायीं। शुरू में एक नाटक मंडल से जुड़े रहे शांताराम ने मूक फिल्मों के दौर से ही अभिनय की शुरूआत कर दी थी। बाद में वह फिल्मों का निर्माण और निर्देशन भी करने लगे।

 

भारत में फिल्मों के शीर्ष सम्मान दादा साहब फाल्के सहित कई सम्मानों से नवाजे गए शांताराम ने हमेशा नृत्य, संवाद, कथानक, संगीत, तकनीक आदि पर अपना ध्यान केंद्रित किया । उनकी फिल्मों का संगीत विशेष रूप से कर्णप्रिय साबित हुआ। उनका जोर हमेशा इस बात पर रहता था कि गानों के बोल सरल एवं आसान हों जिन्हें आसानी से गुनगुनाया जा सके।

 

नयी तकनीक को बढ़ावा देने वाले वी शांताराम हिंदी फिल्मों के उन शुरूआती लोगों में थे जिन्होंने ट्राली व एनिमेशन का इस्तेमाल किया। यही वजह है कि उनकी फिल्में नए दौर में भी दर्शकों को आकषिर्त करती हैं और उन्हें बांधे रखती हैं।

 

मानवता और नैतिकता का संदेश देते हुए शांताराम ने बहुचर्चित फिल्म ‘‘दो आंखे बारह हाथ’’ बनायी। एक सरल कथानक पर आधारित यह फिल्म एक जेलर की कहानी है जो पांच खूंखार कैदियों को सुधारने का प्रयास करता है। ‘दो आंखें बारह हाथ’ फिल्म में कैदियों को सुधारने की कोशिश में आए आशा निराशा भरे अनुभवों का खूबसूरत चित्रण किया गया है।

 

शांताराम की इस फिल्म को राष्ट्रपति के स्वर्ण पदक के अलावा कई देशी विदेशी सम्मान मिले। शांताराम की अन्य चर्चित फिल्मों में ‘डा कोटनिस की अमर कहानी’, ‘झनक झनक पायल बाजे’, ‘नवरंग’, ‘सेहरा’, ‘जीवन यात्रा’, आदि शामिल हैं। उन्होंने हिंदी के अलावा मराठी भाषा में भी कई बेहतरीन फिल्में बनायीं।

 

‘डा कोटनिस की अमर कहानी’ उन फिल्मों में थी जिनका प्रदर्शन विदेशों में भी किया गया। इसे देश के अलावा विदेशों में भी अच्छी कामयाबी मिली।

 

उनकी फिल्मों के विषयों में हमेशा विविधता रही हालांकि वे अधिकतर किसी न किसी सामाजिक मुद्दे से ही जुडी रहीं। विषयों के मामले में प्रयोगधर्मी शांताराम ने एक ओर नृत्य एवं संगीत प्रधान फिल्म ‘झनक झनक पायल बाजे बनायी’ वहीं उन्होंने बेमेल विवाह पर ‘दुनिया ना माने’ जैसी फिल्म भी बनायी।

 

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में 18 नवंबर 1901 को पैदा हुए शांताराम ने नाममात्र की शिक्षा पायी थी और कम उम्र में ही एक नाटक मंडली से जुड़ गए थे। शायह यही वजह रही है कि उनकी फिल्मों में रंगमंच का असर दिखता है।

 

उम्र बढ़ने के साथ ही उनकी गतिविधियां भी प्रभावित होने लगीं लेकिन उनका फिल्मों के प्रति लगाव कम नहीं हुआ। वह कुछ समय तक बाल फिल्म सोसाइटी के अध्यक्ष भी रहे। 30 अक्तूबर 1990 को 88 साल की उम्र में इस महान फिल्मकार का निधन हो गया।

First Published: Tuesday, November 1, 2011, 17:16

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