सुरों के सरताज थे किशोर कुमार

सुरों के सरताज थे किशोर कुमार

सुरों के सरताज थे किशोर कुमारज़ी मीडिया ब्यूरो
नई दिल्लीः अपनी आवाज से लोगों के दिलों पर राज करने वाले गायक किशोर कुमार का जन्मदिन 4 अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा में हुआ था। कुंजीलाल गांगुली के घर जन्में आभास कुमार गांगुली उर्फ किशोर कुमार का रूझान बचपन से ही संगीत की ओर था। किशोर कुमार बचपन से ही प्रसिद्ध गायक के एल सहगल के गीतों से बेहद प्रभावित थे और वैसे ही गायक बनना चाहते थे। उनसे मिलने की चाह में वह मुंबई पहुंचे और यहां से शुरू हुआ उनके संगीत का सुहाना सफर।सुरों के सरताज थे किशोर कुमार

गायक के रूप में किशोर कुमार को 1948 में बॉम्बेटाकीज की फिल्म `जिद्दी` में `मरने की दुआएं क्यूं मांगू` गाने से गायन में मौका मिला। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक से बढ़कर एक हिट गाने गाए। फिल्म `आराधना` के जरिए वे गायिकी की दुनिया के बेताज बादशाह बन गए। इसमें उनके गाए गाने `रूप तेरा मस्ताना`, मेरे `सपनों की रानी कब आएगी तु` को आज भी लोगों के दिलों बसे हैं। किशोर कुमार ने 600 से भी अधिक हिन्दी फिल्मों के लिए गाने गाए। इसके आलावा उन्होंने बंगला, मराठी, आसमी, गुजराती, कन्नड, भोजपुरी और उड़िया फिल्मों में भी अपनी आवाज दी।
सुरों के सरताज थे किशोर कुमार
किशोर कुमार ने गायन के अलावा अभिनय हाथ अजमाया और उसमें भी सफल रहे। उन्होंने पहली बार फिल्म `शिकारी` (1946) में काम किया। उनकी पहली हिट फिल्म 1953 में प्रदर्शित फिल्म `लड़की` थी। इसके बाद उन्होंने बाप रे बाप, चलती का नाम गाड़ी, बेवकुफ, कठपुतली, पड़ोसन, दो दूनी चार, दूर गगन की छांव में, जमीन आसमान, ममता की छांव जैसी कई हिट सुपरहिट फिल्मों में काम किया। जो दर्शकों को बेहद पसंद आई। वर्ष 1987 में किशोर कुमार ने निर्णय लिया कि वह फिल्मों से संन्यास लेने के बाद वापस अपने गांव खंडवा लौट जाएंगे। लेकिन उनका यह सपना अधूरा ही रह गया और अक्टूबर 1987 में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।

First Published: Sunday, August 4, 2013, 13:10

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