हंसने के लिए देखिए `शिरीन फरहाद की तो निकल पड़ी`

हंसने के लिए देखिए `शिरीन फरहाद की तो निकल पड़ी`

हंसने के लिए देखिए `शिरीन फरहाद की तो निकल पड़ी`ज़ी न्यूज ब्यूरो

नई दिल्ली: फराह जीरो साइज वाली अभिनेत्री नहीं है और बोमन इरानी सिक्स पैक्स एब वाले अभिनेता नहीं है। लेकिन इस फिल्म में इस बात की कमी हर्गिज नहीं खलती। यह फिल्म कॉमेडी फिल्मों के लिए नया पैरामीटर साबित हो सकती है जो सिर्फ हंसाने का काम करती है। लाफ्टर का एक ऐसा डोज जो हंसी के जरिए कुछ पैगाम देता नजर आता है।

फराह ने पहली बार अभिनय में हाथ आजमाया है और साबित कर दिखाया है कि वह माहिरे फन है यानी उन्हें कोरियोग्राफी, निर्देशन के अलावा एक्टिंग भी आती है। बोमन तो बोमन है जो हर फिल्म में अभिनय की नई ऊंचाईयों को छूते है। यह फिल्म दो घंटे तक आपको हंसाती है,गुदगुदाती है। फिल्म कब शुरू होती है और कब खत्म हो जाती है पता हीं नहीं चलता। एक और केमिस्ट्री इन दोनों कलाकारों के बीच मैच करती है और वह है कि दोनों अपने-अपने वास्तविक जीवन में हंसमुख है जिसका प्रभाव फिल्म पर बखूबी दिखता है।

फिल्म की कहानी फरहान पास्तकिया (बोमन ईरानी) और शिरीन फागुवाला (फराह खान) के इर्द-गिर्द धूमती है। फरहान 45 साल का हो चुका है और लिंगरी सेल्समैन की वजह से कोई लड़की उससे शादी करने को तैयार नहीं। इस वजह से उसके घरवाले बेहद परेशान है। वहीं शिरीन की उम्र भी इतनी ही है लेकिन घर की जिम्मेदारियों की वजह से उसकी शादी भी नहीं हुई है। लेकिन कहानी में टर्निंग प्वाइंट उस वक्त आता है जब शिरीन और फरहाद का मिलन होता है। कहानी में कई ऐसे ट्विस्ट आते हैं जो आपको कभी बहुत हंसाएंगे तो कभी भावनाओं में बहने को मजबूत कर देंगे।

फिल्म की कहानी एकदम नई है। बेशक, कहानी पुरानी है लेकिन इसके किरदारों की उम्र अलग है। कहीं कहीं ऐसा लगता है कि फिल्म भटक रही है जो फिल्म का लाफ्टर डोज यह कमी छुपा देता है। बेला सहगल का निर्देशन औसत से कहीं बढ़कर है जो आपको कामेडी के बीच कभी-कभार इमोशनल भी बना देता है। सबसे बड़ी बात यह है कि फिल्म में सभी पात्र एक दूसरे से बखूबी जुड़े नजर आते है जिससे किरदारों का बिना वजह घालमेल नहीं है।

फिल्म का गीत-संगीत में `रंभा में संभा` गीत में तो बकायदा शाहरूख और काजोल के कुछ सींस को ‌शिरीन-फरहाद के जरिए फिल्माया गया है। श्रेया घोषाल का गाया गीत `खट्टी मिट‍्टी स्ट्रॉबरी सी` सुनने में अच्छा लगता है। फिल्म का टाइटल सॉन्ग भी लोगों की जुबां पर है।

यह फिल्म सिर्फ कॉमेडी फिल्म ही नहीं है बल्कि सामाजिक सरोकार पर बनी है जो कुछ बेहतर संदेश देती नजर आती है। एक बात और भी है कि आज की तारीख में आप ह्षीकेश मुखर्जी की तरह कॉमेडी फिल्मों के बनने की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। लेकिन जिस प्रकार की फिल्में आज के दौर में बन रही है उस मुताबिक यह फिल्म शानदार है जो दर्शकों की उम्मीदों पर खरा उतरती है। दर्शक वर्ग हॉल में जाकर अपने गिले-शिकवे भुलकर मनोरंजन करने ही तो जाता है । ऐसे में फिल्म में अगर लाफ्टर का डोज हो तो मजा आना स्वाभाविक है। आप हंसने में यकीन रखते हैं। आपको हंसना अच्छा लगता है और आप सामाजिक सरोकार और संवेदनशीलता के बीच हंसने की ख्वाहिश रखते हैं तो यह फिल्म जरूर देखिए।

First Published: Friday, August 24, 2012, 15:24

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