Last Updated: Thursday, December 6, 2012, 23:11

नई दिल्ली: कबीर को होमर से बड़ा शायर बताते हुए गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर ने कहा कि हिन्दी और अंग्रेजी जानने वाले एक दूसरे की भाषा से नफरत करते हैं और फिल्मों में जबान की गिरावट का कारण समाज है।
एक न्यूज चैनल के कार्यक्रम में जावेद ने कहा कि जबान जड़े हैं, हिन्दी तना है और अंग्रेजी शाखायें है, जिसके जरिये पूरी दुनिया तक पहुंचा जा सकता है। मगर नयी पीढ़ी में भाषा के प्रति रूझान कम हुआ है। स्थिति यह है कि अंग्रेजी जानने वाला हिन्दी से और हिन्दी जानने वाला अंग्रेजी से नफरत करता है। यह बीमार बात है, लेकिन सच है।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तान में शायरी बहुत अच्छी हुई है। कबीर बहुत बड़े शायर है, वह होमर या दुनिया के किसी भी कवि से बहुत आगे है। वहीं, यूरोप में उपन्यास अच्छे लिखे गये है। हमारे यहां प्रेमचंद, टैगोर और शरतचंद जैसे कुछ नामों के बाद हम रूक जायेंगे, क्योंकि उपन्यास लिखने के लिए वक्त चाहिए और हमारे यहां का लेखक नौकरी के साथ लिखता है। इसलिए वह कहानी से आगे नहीं लिख पाता है।
फिल्मों में भाषा के स्तर पर गिरावट को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा कि फिल्म वाले समाज का इसी समाज का हिस्सा है, जहां अब साहित्य पर घर में चर्चा होनी लगभग खत्म हो चुकी है। इस वक्त घरों में साहित्य की किताबें नहीं मिलती और नयी पीढी का साहित्य से नाता टूट रहा है। यहां तक कि कवि सम्मेलन तक इस वक्त मनोरंजन का हिस्सा बन गया है।
जावेद साहब ने कहा कि भाषा लिपि में नहीं लिखी जाती बल्कि किसी भी भाषा का आधार व्याकरण होता है, जिसे किसी भी लिपि में लिखते वक्त गलत नहीं होना चाहिए। मैं स्वयं उर्दू की लिपि में लिखता हूं, लेकिन लोग कहते हैं आप बहुत अच्छी हिन्दी लिखते हैं।
उन्होंने कहा कि भाषायें कभी शुद्ध नहीं होती है, क्योंकि उर्दू और हिन्दी में नहीं बल्कि हम हिन्दुस्तानी में लिखते है। कभी भी किसी भाषा को शुद्ध करने की कोशिश से उस भाषा को ही नुकसान होता है। आक्सफोर्ड की डिक्शनरी में शब्द बढ़ते है, जबकि हम शब्द कम कर रहे है। साहित्यिक भाषा में लिखने की बजाय आसान जबान में लिखना बहुत मुश्किल है।
इस मौके पर अशोक बाजपेयी ने कहा कि भाषायें मौलवी और पंडित नहीं बनाते हैं, बल्कि आम नागरिक अपनी सुविधा के मुताबिक भाषा बनाता है। हम संसार के सबसे बड़े बहुभाषी देश हैं, जहां 22 संविधान की मान्यता प्राप्त भाषायें हैं और हिन्दी की 46 बोलियां हैं।
उन्होंने कहा कि भाषा का गणित भी कुछ हद तक जातीय समीकरण जैसा हो गया है, जो अंग्रेजी जाने वह ब्राह्मण और जो ना जाने वह ‘शुद्र’। अंग्रेजी जानना अच्छा है, लेकिन अंर्तध्वनि आपको अपनी भाषा में ही मिलेगी, जिसमें आप सपने देखते है। अंग्रेजी के रौब के पीछे नकली सचाई है।
उन्होंने कहा कि भाषा की हदें खुली होनी चाहिए और अंग्रेजी केवल कुछ प्रतिशत लोगों की भाषा है। उन्होंने कहा कि न अंग्रेजी को, न हिन्दी को किसी को किसी भाषा को अपदस्थ करने का कोई हक नहीं है। (एजेंसी)
First Published: Thursday, December 6, 2012, 23:11