Last Updated: Monday, July 8, 2013, 16:36

लंदन : शोधकर्ताओं ने कैंसर की पहचान के लिए एक ऐसी सस्ती तकनीक विकसित की है जिसमें मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग यानि एमआरआई स्कैनिंग में ट्यूमर की पहचान के लिए चीनी का इस्तेमाल किया जाता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) के वैज्ञानिकों की इस महत्वपूर्ण खोज के जरिए मानक विकिरण तकनीकों के बदले एक सुरक्षित और सरल विकल्प उपलब्ध कराया जा सकता है और इसके जरिए विकिरण चिकित्सक ट्यूमरों की तस्वीरें ज्यादा विस्तृत रूप से ले सकेंगे।
‘ग्लूकोस केमिकल एक्सचेंज सैचुरेशन ट्रांसफर’ या ‘ग्लूकोसेस्ट’ नामक यह नई तकनीक इस तथ्य पर आधारित है कि ट्यूमर अपनी वृद्धि बनाए रखने के लिए किसी सामान्य व स्वस्थ उतक की तुलना में ज्यादा ग्लूकोस (एक प्रकार की चीनी) ग्रहण करता है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि जब ग्लूकोस ग्रहण किए हुए ट्यूमरों पर एमआरआई स्कैनर को केंद्रित किया जाता है तो ट्यूमर ज्यादा चमकीला दिखाई देता है। यह परीक्षण चूहों के एमआरआई करके किया गया।
यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के आधुनिक जैवचिकित्सीय प्रतिबिंब केंद्र (सीएबीआई) के प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर सिमॉन वाकर-सैमुअल ने कहा, ग्लूकोसेस्ट शरीर में चुंबकीय लेबल वाले ग्लूकोस की पहचान के लिए रेडियो तरंगों का इस्तेमाल करता है।
वाकर-सैमुअल ने कहा, इस तरीके में सामान्य चीनी के एक इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जाता है। यह वर्तमान समय के उन तरीकों से कहीं अधिक सुरक्षित और सस्ता तरीका है, जिनमें ट्यूमर की पहचान के लिए रेडियोएक्टिव पदार्थ का इंजेक्शन लगाया जाता है। सीएबीआई के निदेशक और अध्ययन के एक वरिष्ठ लेखक प्रोफेसर मार्क लाएथ्गो ने कहा, हम मानक आकार की एक चॉकलेट के आधे हिस्से में मौजूद चीनी की मात्रा से ही कैंसर का पता लगा सकते हैं। हमारे शोध में एमआरआई के जरिए कैंसर की तस्वीरें निकालने का एक उपयोगी और सस्ता तरीका मिला है। एमआरआई इमेजिंग की एक ऐसी तकनीक है जो केवल कुछ बड़े अस्पतालों में उपलब्ध है।
उन्होंने कहा, भविष्य में मरीजों को विशेष चिकित्सीय केंद्रों के लिए रेफर कर दिए जाने के बजाय स्थानीय अस्पतालों में ही उनकी स्कैनिंग की जा सकेगी। अध्यन के एक अन्य लेखक व यूसीएल के प्रोफेसर ज़ेवियर गोले के अनुसार, हमारी अंतर्विषयक शोध के जरिए हम ज्यादा खराब स्थिति वाले मरीजों जैसे गर्भवती महिलाओं व छोटे बच्चों की नियमित स्कैनिंग विकिरण की डोज़ से जुड़े खतरों को उठाए बिना ही कर सकेंगे।
वाकर-सैमुअल ने कहा, हमने ट्यूमर को देखने और उसकी स्थिति का पता लगाने के लिए एक ऐसी नई इमेजिंग तकनीक विकसित की है जो हमें कैंसर के नए उपचारों की क्षमता हासिल करने में मदद करेगी। यह अध्ययन नेचर मेडिसिन नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है और मानवीय कैंसर में ग्लूकोस की पहचान करने के लिए परीक्षण अभी जारी हैं। (एजेंसी)
First Published: Monday, July 8, 2013, 16:36