Last Updated: Wednesday, August 24, 2011, 10:29
नई दिल्ली : अहिंसात्मक विरोध के लिए एक अहम राजनीतिक हथियार माना जाने वाला अनशन न केवल शरीर की चयापचय प्रणाली पर दुष्प्रभाव डालता है, बल्कि जानलेवा भी हो सकता है.
अनशन के दुष्प्रभावों के बारे में आहार विशेषज्ञ अनुजा अग्रवाल कहती हैं, ‘मानव शरीर के हर अंग और मस्तिष्क के कामकाज के लिए जरूरी ऊर्जा ग्लूकोज से मिलती है और यदि खान-पान में अनियमितता हो अथवा आहार त्याग दिया जाए तो शरीर ऊर्जा के मुख्य स्रोत से वंचित रह जाता है.’ उन्होंने कहा कि ग्लूकोज न मिलने की स्थिति में शरीर चार से आठ घंटे के अंदर अपनी प्रतिक्रिया देता है और वह ग्लाइकोजन से अपनी जरूरत पूरी करने लगता है. ग्लूकोज का यह विकल्प शरीर में आपात भंडार के रूप में रहता है, लेकिन इसकी भी एक निश्चित मात्रा होती है.
आहार विशेषज्ञ कामिनी बाली ने बताया, ‘आहार शरीर में न पहुंचने पर ऊर्जा का अभाव कई समस्याओं का कारण बन जाता है. इस दौरान मस्तिष्क कीटोन से अपनी जरूरत पूरी करता है. वसा स्वयं को कीटोन में तब्दील करती है और कीटोन की कितनी मात्रा उपलब्ध हो पाएगी, यह वसा की मात्रा पर निर्भर करता है.’ उन्होंने कहा कि वसा समाप्त होने पर शरीर पर भूख का असर पड़ने लगता है. ऐसे में मांसपेशियां और ऊतक टूटने लगते हैं ताकि कहीं से तो ऊर्जा मिले और शरीर का तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) तथा वाहिका तंत्र (सरकुलेटरी सिस्टम) चलता रहे.
आहार विशेषज्ञ शीला सहरावत ने बताया कि वसा टूटने पर जब कीटोन बनता है तो सामान्यत: पेशाब के जरिये बाहर निकलता है. लेकिन यदि शरीर में कीटोन की मात्रा बढ़ जाए या व्यक्ति को निर्जलीकरण की समस्या हो जाए तो कीटोन का निर्माण रक्त में भी होने लगता है. रक्त में कीटोन का स्तर बढ़ने से सांस में दुर्गंध, भूख न लगना, जी मिचलाना, वमन जैसी समस्याएं हो सकती हैं. यदि रक्त में कीटोन का स्तर अनियंत्रित हो जाए तो व्यक्ति कोमा में जा सकता है और उसकी मौत भी हो सकती है. उ
First Published: Wednesday, August 24, 2011, 16:00