Last Updated: Saturday, September 29, 2012, 10:21

नई दिल्ली : दिल की बस्ती को संभालने की बार-बार हिदायत और चेतावनी दिए जाने के बाद भी हर साल दुनिया भर में 1.73 करोड़ लोग केवल दिल की वजह से ही मौत के मुंह में चले जाते हैं। आधुनिक तकनीक के चलते इस दिल को बचाने की खातिर अब उसकी बस्ती में बाहरी दखल बढ़ती जा रही है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह दखल जितनी कम हो, उतना बेहतर है।
गुड़गांव स्थित मेदांता मेडिसिटी के निदेशक और हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. नरेश त्रेहन ने कहा, ‘दिल की हिफाजत में हुई चूक, जीवनशैली, पर्यावरण तथा अन्य कारणों के चलते दिल की बीमारी के मामले बढ़ते जा रहे हैं। बहरहाल, आधुनिक दुनिया में अपना सिक्का जमाने वाला रोबोट अब दिल की सर्जरी में मददगार हो रहा है।’ उन्होंने कहा, ‘भले ही सुनने में अजीब लगे लेकिन अब रोबोट की मदद से दिल के खराब वाल्व की मरम्मत, कोरोनरी धमनी की बाईपास ग्राफ्टिंग, हृदय के ऊपरी कक्ष में हुए छेद की मरम्मत के साथ-साथ धमनियों में आई रूकावट दूर की जाती है। रोबोट की मदद से बाइवेन्ट्रीकुलर पेसमेकर भी लगाया जा सकता है। लेकिन इसका खर्च आम आदमी के लिए बहुत मुश्किल होता है। इसलिए कोशिश करनी चाहिए कि समय रहते सतर्क हो जाएं।’
फोर्टिस एस्कॉर्ट हार्ट इन्स्टीट्यूट के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. अतुल माथुर ने कहा, ‘कम उम्र के लोगों में दिल की बीमारी के बढ़ते मामले चिंताजनक हैं। बड़ी देर तक एक ही जगह बैठकर काम करना, तला भुना खाना, तनाव, धूम्रपान, शराब, असंयमित जीवनशैली, कम से कम शारीरिक श्रम, पर्यावरण कई कारण हैं दिल की बीमारी के। समाधान भी हैं लेकिन समय रहते चेत जाने से बाहरी समाधान की जरूरत नहीं पड़ती। यही बेहतर भी है।’
मुंबई स्थित हिन्दुजा अस्पताल के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. सुधीर वैष्णव ने ईमेल के जरिये बताया कि ट्रान्सकैथेटर एओर्टिक वाल्व इम्प्लांटेशन (टीएवीआई) भी एक ऐसी ही प्रौद्योगिकी है जिसकी मदद से खराब हो चुके धमनी वाल्व को हटाकर दूसरा वाल्व लगाया जा सकता है। इस प्रौद्योगिकी में गाय के उत्तक से बना वाल्व दिल में लगा दिया जाता है। यह वाल्व मजबूत होता है और इसमें स्टेनलेस स्टील का एक स्टेन्ट भी लगा होता है। डॉ. वैष्णव ने बताया कि इस वाल्व को कैथेटर की मदद से पहले जांघ की फीमोरल धमनी में प्रविष्ट कराया जाता है और फिर छाती में पहुंचा कर दिल में लगा दिया जाता है तथा खराब हुए वाल्व को निकाल दिया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में लगने वाला समय ओपन हार्टसर्जरी में लगने वाले समय से आधा होता है।
डॉ. त्रेहन ने कहा कि कृत्रिम हृदय भी दिल की बीमारी की समस्या का हल बनकर सामने आया है। उन्होंने कहा, ‘दिल के मरीजों में से एक फीसदी से भी कम लोगों को प्रत्यारोपण के लिए अंग नहीं मिल पाते। ऐसे में हाल ही में विकसित कृत्रिम हृदय बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। इस उपकरण का आकार मूल हृदय से छोटा होता है। मरीज का मूल हृदय ठीक होने के बाद कृत्रिम हृदय को निकाल दिया जाता है पर इसका खर्च उठाना सबके बस की बात नहीं होती।’ हृदय संबंधी बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए वर्ष 2000 से हर साल सितंबर माह के आखिरी रविवार को विश्व हृदय दिवस मनाया जा रहा है। इस साल 29 सितंबर को विश्व हृदय दिवस मनाया जा रहा है और इसकी थीम ‘वन वर्ल्ड, वन होम, वन हार्ट’ है।
डॉ त्रेहन ने कहा, ‘तकनीकें आती रहेंगी लेकिन अगर शुरू से ही संयमित खानपान, व्यसनों से परहेज, व्यायाम आदि को अपनाया जाए तो दिल की दुनिया को बाहरी दस्तक से बचाया जा सकता है। इसलिए पूरी कोशिश करनी चाहिए कि दिल सचमुच एक ही हो और उसकी दुनिया में बाहरी दखल न हो।’ (एजेंसी)
First Published: Saturday, September 29, 2012, 10:21