Last Updated: Thursday, September 6, 2012, 08:39

लंदन : नींद में खर्राटे लेने और सांस में रुकावट सम्बंधी बीमारी `स्लीप एप्निया` से ऐसे लोगों में कैंसर का खतरा लगभग दोगुना होने का खतरा है, जो गहरी नींद में सोते हैं। इसका दावा एक नए अध्ययन में किया गया है। अपने तरह के इस सबसे बड़े अध्ययन में पाया गया है कि एप्निया में जिन लोगों में ऑक्सीजन का बहुत अभाव था, उन्हें अधिक खतरा है। नींद की इस बीमारी को पहले ही मोटापे, हृदय रोग, मधुमेह, दिन में होने वाली थकान और उच्च रक्तचाप से जोड़कर देखा जाता है।
इस तरह के पीड़ितों को उपचार की सलाह दी जाती है, क्योंकि रात में ऑक्सीजन का स्तर बरकरार रखने से अन्य सम्बंधित बीमारियों का खतरा कम हो सकता है। इस बीमारी से ब्रिटेन में करीब 50 लाख लोग प्रभावित हैं, जिनमें अधिकतर वयस्क उम्र और अधिक वजन के हैं। ये रात में करीब 100 बार सांस लेना बंद कर देते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, इस स्थिति में नींद के दौरान श्वास नली की पेशियां शिथिल पड़ जाती हैं और जब तक दिमाग से पेशियों को दोबारा काम करने का संकेत नहीं मिलता, सांस 10 या उससे ज्यादा सेकेंड के लिए रुक जाती है।
स्पेन के शोधार्थियों ने सात निद्रा चिकित्सालयों के 5,600 मरीजों के अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला। शोधकर्ताओं ने इन लोगों के रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा 90 प्रतिशत से नीचे चले जाने की अवधि का अध्ययन किया, जिसे हाइपोग्जेमिया इंडेक्स कहा जाता है। शोध सात साल तक किया गया। अध्ययन शुरू करते वक्त किसी भी रोगी को कैंसर की बीमारी नहीं थी।
शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों में हाइपोग्जेमिया का स्तर बहुत अधिक है या ऑक्सीजन का अभाव है, उनमें कैंसर का खतरा उतना ही अधिक होगा।
स्पेन के वलेंशिया में ला फे विश्वविद्यालय और पॉलिटेक्निक अस्पताल से जुड़े मिगल एंजेल मार्टिनेज गार्शिया ने कहा कि कैंसर का खतरा ऑक्सीजन के बिना बिताई जाने वाली अवधि से बढ़ जाता है।
ऐसे लोग जिन्हें सोने की 14 प्रतिशत अवधि तक 90 प्रतिशत से कम ऑक्सीजन मिलता है, उनमें कैंसर का खतरा उन लोगों की तुलना में दोगुना हो जाता है, जिन्हें स्लीप एप्निया नहीं होता। इस अध्ययन के नतीजे ऑस्ट्रिया के वियना में यूरोपियन रेस्पिरेटरी सोसायटी कांग्रेस में पेश किए गए। (एजेंसी)
First Published: Thursday, September 6, 2012, 08:39