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यह उदासीनता आत्मघाती है ?

Last Updated: Sunday, February 16, 2014, 21:25

वैदिक-काल से ही इस देश में पशुओं को धन की श्रेणी में रखा जाता रहा है, फिर वह चाहे दुधारू पशु रहे हों या ऐसे जिनसे मानव जीवन कोई लाभ नहीं उठा सकता। लेकिन आज के हालात पर आप गौर करेंगे तो पता चलेगा कि गोधन-पशुधन की परिकल्पना को आत्मसात करने वाला देश, पशुओं के प्रति संवेदनहीनता और क्रूरता की पराकाष्ठा पर पहुंच चुका है।

भारत में बदहाल पशुधन और कृषि

Last Updated: Tuesday, December 3, 2013, 17:37

भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने में कृषि प्रधानता और पशुधन की परिकल्पना प्राचीन समय से ही रही है। किसी भी समाज में खाद्य-सुरक्षा के लिए कृषि उत्पाद और पशुधन उत्पाद की उपल्बधता आवश्यक मानी जाती है।