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मॉनसून पर निर्भरता, आफत ही आफत

Last Updated: Tuesday, July 31, 2012, 17:39

तुलसीदास ने रामायण में लिखा है “का बरखा, जब कृषि सुखाने। समय चुके फिर का पछताने”। कमजोर पड़े मॉनसून और बारिश की कमी से देश भर में इस समय हाहाकार की नौबत उत्‍पन्‍न हो गई है। मॉनसून में कमी के चलते सिर्फ देश भर के किसान ही नहीं बल्कि पूरा तंत्र परेशान हैं। अगर ‘इंद्रदेव’ इसी तरह रूठे रहे तो पहले से खराब अर्थव्यवस्था का हाल और बुरा हो सकता है।