Last Updated: Thursday, June 27, 2013, 14:37
नई दिल्ली : उत्तराखंड में भारी बारिश और बादल फटने से हुई विनाशलीला पर दुख जताते हुए वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम ने कहा है कि उत्तराखंड सहित कई राज्यों में बाढ़ नियंत्रण और आपदाओं से निपटने संबंधी दिशानिर्देशों की अनदेखी की गई है। एसोचैम के अनुसार ज्यादातर राज्यों में आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा जून 2008 में जारी व्यापक दिशानिर्देश धूल फांक रहे हैं।
एसोचैम अध्यक्ष राजकुमार धूत के अनुसार, ‘यदि केवल बांधों और तटबंधों तथा अन्य ढांचागत उपायों का मानसून से पहले और मानसून के बाद साल में दो बार ही निरीक्षण कर लिया जाए और अचानक बाढ़ की भविष्यवाणी और चेतावनी प्रणाली पर गौर किया जाए तो मानव जीवन और हजारों करोड़ रुपये के जनधन के भारी नुकसान से बचा जा सकता है।’
एसोचैम पर्यावरण अनुसंधान विभाग ने बांढ नियंत्रण और आपदा प्रबंधन के बारे में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के 135 पृष्ठों में जारी दिशानिर्देशों पर गौर करने के बाद पाया कि उत्तराखंड सहित कई राज्यों में इन्हें नजरंदाज किया गया है। एसोचैम का कहना है कि पानी राज्य का विषय है इसलिये प्राधिकरण के दिशानिर्देशों पर अमल को राज्य, जिलों और स्थानीय प्राधिकरण पर छोड़ दिया गया है। उद्योगमंडल ने कहा है कि अब समय आ गया है कि वर्ष 2005 के एनडीएमए अधिनियम की समीक्षा की जाये और इसके नियमों पर अमल को अनिवार्य बना दिया जाना चाहिये।
एसोचैम अध्यक्ष ने कहा है कि यदि हमें अपने देश को प्राकृतिक आपदाओं से बचाना है तो इस कानून में जवाबदेही तय करने के उपयुक्त प्रावधान किये जाने चाहिए। आवश्यकता पड़ती है तो राज्यों को उनके अपने कानून बनाने को कहा जा सकता है ताकि इस मामले में गंभीर खामियों के लिये जवाबदेही तय की जा सके। (एजेंसी)
First Published: Thursday, June 27, 2013, 14:37