डीजल पर घाटा बढ़ा, 9.45 रुपए/लीटर तक पहुंचा--Diesel losses widen to Rs 9.45 per litre

डीजल पर घाटा बढ़ा, 9.45 रुपए/लीटर तक पहुंचा

डीजल पर घाटा बढ़ा, 9.45 रुपए/लीटर तक पहुंचानई दिल्ली : डॉलर की तुलना में रुपये में कमजोरी के चलते डीजल लागत से कम मूल्य पर बेचने से होने वाला नुकसान यानी अंडर रिकवरी बढ़कर 9.45 रुपये प्रति लीटर हो गई जिससे सरकार की सब्सिडी गणना गड़बड़ाने लगी है। इंडियन आयल कारपोरेशन (आईओसी) के वित्त निदेशक पी के गोयल ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा, हमें इस समय डीजल पर 9.45 रुपये प्रति लीटर का नुकसान हो रहा है जबकि पूर्व सप्ताह में यह नुकसान 8.60 रुपए प्रति लीटर था। सरकार ने जनवरी में डीजल की कीमत हर महीने 40-50 पैसे प्रति लीटर बढ़ाने का फैसला किया था। यह वृद्धि तब तक होती रहेगी जबतक कि ब्रिकी पर नुकसान समाप्त नहीं हो जाता। धीरे धीरे दाम बढ़ते रहने से डीजल ब्रिकी पर नुकसान मार्च के 8.64 रुपए से घटकर 2.62 रुपए आ गया। लेकिन इस बीच अंतर बैंक विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर की तुलना में रुपये के टूटकर 60 से भी नीचे चले जाने के कारण डीजल ब्रिकी पर होने वाला नुकसान फिर से बढ़कर 9.45 रुपए प्रति डॉलर हो गया है। सरकार द्वारा मिली मंजूरी के हिसाब से डीजल की कीमतों में आगामी संशोधन इस महीने के आखिर में किया जाना है।


गोयल ने कहा कि डीजल के साथ साथ तेल कंपनियों को केरोसीन की ब्रिकी पर 30.53 रुपये प्रति लीटर तथा 14.2 किलो के एलपीजी सिलेंडर पर 368.58 रुपये (प्रति सिलेंडर) का नुकसान हो रहा। इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम तथा हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने मौजूदा वित्त वर्ष की शुरुआत इस अनुमान के साथ की थी कि 2013-14 में डीजल, केरोसीन, रसोई गैस को सरकारी नियंत्रित मूल्यों पर बेचने से उन्हें 80,000 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान होगा।

इसको ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्रालय ने 20,000 करोड़ रुपये का बोझ उठाने की प्रतिबद्धता जताई जबकि बाकी 60,000 करोड़ रुपये की भरपाई को ओएनजीसी जैसी उत्खनन कंपनियों के जिम्मे छोड़ दिया गया। उन्होंने कहा कि हालांकि, रुपये में गिरावट से अंडर रिकवरी अब 1,25,000 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया जा रहा है।

तेल कंपनियों को 2012-13 में इस मद में 1,61,029 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था जबकि कच्चे तेल का औसत मूल्य 107.07 करोड़ रुपये और डॉलर-रुपये की विनिमय दर 54.45 रुपये प्रति डॉलर रही थी। गोयल ने कहा डॉलर के मुकाबले रुपये में आने वाली हर एक रुपये की गिरावट से पेट्रोलियम पदाथोर्ं की सब्सिडी पर सालाना 8,000 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ता है जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में एक डालर की वृद्धि से सालाना अंडर रिकवरी में 4,300 करोड़ रुपये बढ़ जाते हैं। चालू वित्त वर्ष में रुपया अब तक 11.8 प्रतिशत गिर चुका है। आठ जुलाई को यह अब तक के सबसे निचले स्तर 61.21 रुपये को छू चुका है। (एजेंसी)

First Published: Monday, July 15, 2013, 21:07

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