Last Updated: Tuesday, December 25, 2012, 14:56
नई दिल्ली : अर्थव्यवस्था की रफ्तार घटने के बावजूद इस साल 2012 में भारतीय कंपनियों द्वारा घोषित विलय एवं अधिग्रहण सौदों का आंकड़ा 2,000 अरब रुपए के आंकड़े को पार कर गया। सरकार द्वारा हाल में उठाए गए सुधारात्मक कदमों विशेष रूप से विदेशी निवेश के नियमों को उदार बनाए जाने के बाद नए साल पर विलय एवं अधिग्रहण सौदों में तेजी का सिलसिला बना रहेगा।
हालांकि, यदि इससे पिछले साल से तुलना की जाए, तो 2012 का साल कुछ कमजोर कहा जाएगा, लेकिन भारतीय कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजारों में फिर से धीरे-धीरे आगे बढ़ रही हैं और 2013 में विलय एवं अधिग्रहण सौदों में अच्छा खासा इजाफा देखने को मिल सकता है।
कर एवं सलाहकार कंपनी ग्रांट थॉर्नटन के मुताबिक, 15 दिसंबर, 2012 तक भारतीय कंपनियों ने 41.5 अरब डॉलर के 582 विलय एवं अधिग्रहण सौदों की घोषणा की। 2011 में 44.6 अरब डॉलर के 644 सौदों की घोषणा की गई थी।
वर्ष 2012 की शुरुआत इस मामले में तेजी के साथ हुई, लेकिन दूसरी तिमाही और कुछ हद तक तीसरी तिमाही आते-आते विलय एवं अधिग्रहण सौदों की संख्या घटने लगी।
सरकार ने सितंबर के मध्य में कई सुधारों की घोषणा की जिससे तरलता की स्थिति में सुधार हुआ और सौदों की संख्या और मूल्यांकन दोनों ने रफ्तार पकड़ी।
विशेषज्ञों का कहना है कि विलय एवं अधिग्रहण सौदों के लिए 2013 का परिदृश्य बेहतर नजर आता है। इस दौरान ऐसे सौदों की संख्या में अच्छा खासा इजाफा देखने को मिल सकता है।
पीडब्ल्यूसी इंडिया के कार्यकारी निदेशक संजीव कृष्णन ने कहा,‘अब विदेशी निवेशक भारत को लेकर संतुष्ट महसूस कर रहे हैं। ऐसे में देश में होने वाले विलय एवं अधिग्रहण सौदों की चमक लौटेगी। घरेलू अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहतर होने पर हम अच्छे 2013 की उम्मीद कर सकते हैं।’
ग्रांट थॉर्नटन के भागीदार (भारतीय लीडरशिप टीम) हरीश एच वी ने कहा, ‘भारतीय उद्योग जगत फिर से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में आगे बढ़ रहा है। हमें भरोसा है कि 2013 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय कंपनियों के विलय एवं अधिग्रहण सौदों में इजाफा होगा। लगभग सभी वर्गों में निरंतर गतिविधियां देखने को मिलेंगी।’
इस तरह के सौदों पर निगाह रखने वाली फर्म मर्जर मार्केट की एशिया प्रशांत की डिप्टी एडिटर अंजलि पिरामल ने कहा कि 2013 में भारतीय उद्योग जगत की अगुवाई टाटा, महिंद्रा, हिंदुजा तथा आदित्य बिड़ला जैसे समूह करेंगे। ये समूह विदेशी बाजारों में अधिग्रहण पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
इस साल विलय एवं अधिग्रहण सौदों में कमी की वजह बताते हुए एवेंडस कैपिटल के कार्यकारी निदेशक प्रीत मोहन सिंह ने कहा, ‘इक्विटी पूंजी की कमी तथा ऋण की ऊंची लागत की वजह से बहुत कम भारतीय कंपनियां विदेशों में अधिग्रहण के लिए गईं।’ (एजेंसी)
First Published: Tuesday, December 25, 2012, 14:56