Last Updated: Wednesday, September 4, 2013, 21:36

प्रधानमंत्री के विशेष विमान से : भारत ने आज रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (एसएंडपी) के इस ताजा अनुमान को पूरी तरह खारिज कर दिया कि अगले एक से दो साल में देश की रेटिंग के घटने के ‘तीन में एक से अधिक के आसार हैं।’ भारत ने कहा कि ऐसे आसार ‘कोई संभावना’ नहीं है।
आर्थिक मामलों के सचिव अरविंद मायाराम ने एसएंडपी के अनुमान पर भारत का आकलन देते हुए कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट के बावजूद देश ने अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए कई कदम उठाए हैं। उन्होंने यह भी सवाल किया कि एसएंडपी ने अपने अनुमान के लिए न जाने कौन सा गणितीय माडल अपनाया है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए रूस जा रहे मायाराम ने कहा, रेटिंग में कटौती की कोई संभावना नहीं है। मायाराम से भारत के लिए नकारात्मक परिदृश्य संबंधी एसएंडपी के अनुमान के बारे में पूछा गया था।
सोल में मंगलवार को एसएंडपी के एक विश्लेषक किम इग तान ने कहा था कि हमारा भारत के लिए नकारात्मक परिदृश्य है। हमारा मानना है कि अगले एक से दो साल में रेटिंग में कटौती की संभावना तीन में एक से अधिक है। तान ने कहा था कि भारत की रेटिंग में कटौती की संभावना इंडोनेशिया से भी अधिक है। इंडोनेशिया की मुद्रा मंगलवार को चार साल के निचले स्तर पर पहुंच गई।
चालू खाते के घाटे (कैड) के अलावा रुपये में गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है। डालर की तुलना में इस साल रुपये में 20 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। सवालों के जवाब में मायाराम ने कहा कि सरकार चालू खाते के घाटे को नीचे लाने के लिए प्रतिबद्ध है। 2012-13 में कैड सकल घरेलू उत्पाद के रिकॉर्ड उच्च स्तर 4.8 प्रतिशत पर पहुंच गया। सरकार ने चालू वित्त वर्ष में कैड को जीडीपी के 3.7 प्रतिशत या 70 अरब डॉलर पर सीमित रखने का लक्ष्य रखा है।
वित्त मंत्री पी चिंदबरम ने कैड के लिए 3.7 प्रतिशत की लाइन रेखा तय की है। मायाराम ने कहा, हम इस लाल रेखा को पार नहीं करेंगे। उन्होंने इस संभावना से इनकार नहीं किया कि कैड 3.7 प्रतिशत से भी नीचे रह सकता है।
मायाराम ने कहा कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं बुनियादी ढांचे में निवेश को लेकर जी-20 में सहमति का अभाव है। जी-20 बैठक में विश्व बैंक इस बारे में रिपोर्ट पेश कर सकता है। वैश्विक व्यापार के मुद्दों पर मायाराम ने इस बात पर क्षोभ जताया कि कुछ उभरती अर्थव्यवस्थाएं सेवाओं के मामले में व्यापार संबंधी करार को वापस लेने के लिए प्रयास कर रही हैं। सेवाओं के लिए पूर्व व्यवस्था को कायम रखा जाना चाहिए।
उन्होंने इन सुझावों को खारिज कर दिया कि ढांचागत सुधारों की कमी जैसे कुछ घरेलू कारकों से भी भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। उन्होंने कहा, और अधिक और गहराई वाले सुधारों का मामला बनता है। लेकिन यह मानने की कोई वजह नहीं है कि सुधार हुए ही नहीं हैं। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, September 4, 2013, 21:36