Last Updated: Saturday, February 9, 2013, 21:00

रामानुज सिंह
कुछ वर्षों से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम प्रदेश के विकास पुरुष के रूप में देश में ही नहीं विदेशों में भी चर्चित रहा है। इतना ही नहीं इन्हें सुशासन का प्रणेता भी कहा गया। न्याय यात्रा, धन्यवाद यात्रा, विकास यात्रा, विश्वास यात्रा, प्रवास यात्रा और सेवा यात्रा करने के बाद जब नीतीश कुमार अधिकार यात्रा पर निकले तो प्रदेश के जिस-जिस जिले में गए वहां जनता के विरोध का सामना करना पड़ा। फलस्वरुप उन्हें यात्रा स्थगित करनी पड़ी। ऐसा माना जा रहा है कि नीतीश सरकार का जनाधार अब घट रहा है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार को विशेष राज्य दर्जा दिलाने के लिए प्रदेश की जनता को अपनी बात बताने के लिए अधिकार यात्रा निकाली। पहले दिन जब नीतीश बेतिया पहुंचे तो लोगों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया। नियोजित शिक्षकों ने अपनी सेलरी नियमित भुगतान करने और नौकरी स्थाई करने की मांग को लेकर हंगामा किया। विरोध की यह आग थमी नहीं। मोतिहारी, मधुबनी, दरभंगा और बेगुसराय में विरोध प्रदर्शन हुए और काले झंडे दिखाए गए। नीतीश का काफीला जब खगड़िया पहुंचा तो लोगों का विरोध और तीव्र हो गया। उनकी गाड़ी पर पत्थर फेंके गए। नीतीश की सभा में भारी हंगामे हुए। पुलिस को लाठी चार्ज और हवाई फायरिंग करनी पड़ी। सीएम नीतीश ने इस हमले को खुद पर जानलेवा हमला बताया।
कुछ दिनों बाद मधुबनी में एक लड़का और एक लड़की लापता हो गया। पुलिस ने लापता लड़के और लड़की की तलाश शुरू की। परन्तु उस दरम्यान एक सिर कटी लाश मिली जिसे लड़के के घर वालों ने अपने बेटे की लाश मान ली। फिर किया था इस हत्या के प्रतिशोध में मधुबनी जल उठा। हत्या के विरोध में जमकर तोड़फोड़ की गई। स्थिति पर काबू पाने के लिए पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी। इस फायरिंग में दो लोगों की मौत हो गई। विरोधी दल को एक बेहतरीन मुद्दा मिल गया और 15 अक्टूबर को बिहार बंद का ऐलान कर दिया। इस बंद में राजद, लोजपा के अलावा वामपंथी दलों ने भी हिस्सा लिया। इसके अलावे कांग्रेस ने भी बंद का समर्थन किया। इस बंद का असर कमोबेश पूरे प्रदेश में देखा गया। यह नीतीश कुमार की सरकार के खिलाफ अबतक का सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन था। हालांकि जिसकी हत्या की वजह से इतना बवाल हुआ, वह लड़का दिल्ली के मेहरौली में सकुशल मिला।
मधुबनी हत्या का विरोध भले ही तात्कालिक कारण हो पर नीतीश कुमार के सुशासन की कलई खुल गई है। यह घटना एक जिले की थी लेकिन इसका असर पूरे प्रदेश में देखा गया। जाहिर है विरोध में आम लोगों का बड़े पैमाने पर शिरकत करना सरकार के प्रति असंतोष साफ झलकता है। लालू के कुशासन से त्रस्त होकर प्रदेश की जनता ने बड़े आस लगाकर नीतीश कुमार को प्रदेश का मुखिया बनाया था। नीतीश की सरकार ने अपने पहले पांच साल के कार्यकाल में कुछ अच्छे काम जरूर किए। गुंडागर्दी पर नियंत्रण पाया। सड़कों और अस्पताल व्यवस्था को बेहतर बनाया। सर्वशिक्षा अभियान के तहत स्कूलों के भवन बनवाए। नियोजित शिक्षकों की नियुक्ति की। जिससे प्रदेश में रोजगार के अवसर बढे। प्रदेश का विकास दर देश भर में गुजरात के बाद दूसरे नंबर पर आ गया। नीतीश कुमार के विकास मॉडल की सराहना देश में ही नहीं, विदेशों में भी होने लगी। अमेरिका ने अपने भारतीय राजदूत को नीतीश के विकास मॉडल को देखने के लिए पटना भेजा। इतना ही नहीं दूसरे राज्य के विरोधी मुख्यमंत्री भी नीतीश की तारीफ करने लगे। तात्कालीन पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने नीतीश के लड़कियों के साइकिल देने की योजना को सराहा और अपनाने का फैसला किया।
इस तरह सीएम नीतीश कुमार का महिमामंडन होने लगा। मीडिया उन्हें सर आंखों पर बैठाया। नीतीश से लोगों की आशा और बढ गई, दूसरे कार्यकाल के लिए जबरदस्त बहुमत दिया। दूसरे कार्यकाल में बिहार सरकार ने कई ऐसे फैसले लिए जो जन विरोधी साबित हुए। दूसरे कार्यकाल में जनप्रतिनिध के अधिकार को कम कर दिया गया। विधायक विकास निधि को खत्म कर दिया गया। नौकरशाह को ज्यादा ताकतवर बना दिया गया। मुखिया को शिक्षकों की नियुक्ति का अधिकार दे दिया गया। इससे प्रदेश में भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया। जब आम लोग अंचल कार्यालय जाते हैं तो वहां के कर्मचारी आवासीय, जातीय प्रमाण पत्र बनाने तक में घूस मांगते हैं। यह तो एक उदाहरण है। करीब सभी विभाग में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। नियोजित शिक्षकों का वेतन छह हजार से लेकर सात हजार तक है जिसे सैलरी नियमित नहीं मिलती है। कभी चार माह में तो कभी छह माह में सैलरी नसीब होती है। महंगाई के युग में इतने रुपए से किसका घर चल सकता है? वो भी समय पर नहीं मिलता है। बिजली की समस्या बदस्तूर जारी है। सरकार बाढ़ और सूखे का भी निदान नहीं निकाल पाई है, जिससे किसानों में भी असंतोष है। इसके अलावे कई कारण हैं जिससे नीतीश सरकार से लोगों का मोह भंग होता जा रहा है।
बिहार में सत्तारूढ़ पार्टी जनता दल यूनाइटेड की सहयोगी पार्टी भारतीय जनता पार्टी से भी समय-समय पर नीतीश कुमार की अनबन चलती रहती है। लोकसभा चुनाव 2014 करीब है, जिससे भाजपा ने नरेंद्र मोदी को अपनी पार्टी की ओर से अगले प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत करना चाहा। जिसपर नीतीश कुमार बिफर गए। अंततः भाजपा को यह कहना पड़ा कि अगला पीएम उम्मीदवार एनडीए का होगा। नरेंद मोदी जब-जब बिहार आना चाहते है तो उन्हें बिहार आने से रोक दिया जाता है। इससे साफ पता चलता है कि गठबंधन लंबे समय तक चलने वाला नहीं है। हालांकि नीतीश कुमार ने घोषणा की है कि आगामी लोकसभा चुनाव जेडीयू-भाजपा मिलकर लड़ेगी।
First Published: Wednesday, October 17, 2012, 15:44