बॉलीवुड के भी `सरकार` थे बालासाहेब

बॉलीवुड के भी `सरकार` थे बालासाहेब

बॉलीवुड के भी `सरकार` थे बालासाहेबबिमल कुमार

शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के निधन के बाद न सिर्फ कार्यकर्ता और महाराष्‍ट्रवासी बल्कि पूरा बॉलीवुड भी शोक में डूब गया। एक दौर ऐसा भी था जब मायानगरी में किसी फिल्‍म की रिलीज से पहले बाला साहेब की हरी झंडी ली जाती थी। यही नहीं, उन फिल्‍मों के पोस्‍टर के किसी कोने में इस बात का जिक्र होता था `बाला साहेब की रजामंदी के बाद फिल्‍म रिलीज`। सही मायनों में बाला साहेब बॉलीवुड के `सरकार` थे और उनका मायानगरी से काफी करीबी रिश्‍ता रहा है। शिवसेना प्रमुख ने मुंबई के बांद्रा स्थित अपने आवास मातोश्री पर शनिवार को अंतिम सांस ली।

बाला साहेब ने बॉलीवुड के कई लोगो को अंडरवर्ल्‍ड के खौफ से बचाया था। अंडरवर्ल्‍ड डॉन दाउद इब्राहिम से कई बॉलीवुड हस्तियों को मिली धमकी के बाद बाला साहेब ने ही उन्‍हें इस `आतंक` से बचाया था। दाउद के खौफ के चलते बॉलीवुड का काम प्रभावित हो रहा था और कई प्रोजेक्‍ट बंद होने के कगार पर थे। ऐसे में ठाकरे सामने आए और इन लोगों के `संरक्षक` बने। इन खौफ के बीच बॉलीवुड की कई प्रमुख हस्तियां उनके निवास मातोश्री पर उनसे गुहार लगाने पहुंचे। सलीम खान का परिवार भी उनसे गुहार लगाने वालों में एक था। उनके हस्‍तक्षेप से ही इन हस्तियों को राहत मिली। कुछ लोग कहते हैं कि दाउद को पुलिस का खौफ कतई नहीं था, लेकिन बाला साहेब का खौफ था।

बाला साहेब ने अपने जीवन में कई बड़े काम किए। वर्षों तक देश की सेवा की और छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम को महाराष्ट्र में जीवित रखा। राम गोपाल वर्मा की फिल्‍म `सरकार` में भी बाला साहेब का चित्रण किया गया। वह सही मायनों में शक्ति शब्द के प्रतीक थे।

सदी के महानायक अभिताभ बच्चन ने तो `टाइगर` कहे जाने वाले बाल ठाकरे को धैर्य और पवित्रता का प्रतीक पुरुष तक बताया। हिंदी फिल्म जगत की कई हस्तियों ने उनके निधन पर संवेदना जताई।

ठाकरे ने ही बॉम्‍बे का नाम बदल कर मुंबई किया था। संभवत: एक सबसे बड़ा कारण यह भी है कि मुंबईवासी ठाकरे से इतना प्‍यार करते हैं। ठाकरे ने बॉम्‍बे का नाम मुंबई करने के लिए एक बड़ी जंग लड़ी। इस जंग में ठाकरे और उनके सैनिकों ने बड़ा आंदोलन किया था। ठाकरे का मानना था कि महाराष्‍ट्र की राजधानी का नाम बॉम्‍बे अंग्रेजों ने रखा था। अब हम अंग्रेजों के गुलाम नहीं हैं, तो उस नाम को क्‍यों बनाए रखें।

बाल ठाकरे ने कभी मुंबई के खिलाफ एक भी शब्‍द नहीं सुना। मुंबई में माइकल जैक्‍सन से लेकर तमाम बड़ी हस्तियां जब कभी मुंबई आई तो वे ठाकरे से मिलने पहुंचे। जब-जब मुंबईवासी ठाकरे के पास गए, तब-तब उन्‍होंने मदद के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाए। उनके प्रति मुंबईवासियों का बहुत मजबूत बंधन था।

बाल ठाकरे अपने अंतिम समय तक सुर्खियों में छाए रहने वाले देश के चंद नेताओं में रहे। सरहद के बाहर भी लोग उन्हें जानते और पहचानते हैं। छह दशक से लंबे सार्वजनिक जीवन में ठाकरे हमेशा किसी न किसी विवाद में रहे। देश भर में `बालासाहेब` के रूप में लोकप्रिय ठाकरे देश के उन नेताओं में से रहे जिनका करिश्मा सिर चढ़कर बोलता था। उन्‍होंने अपने दम पर राजनीतिक दल खड़ा ही नहीं किया बल्कि उसे सत्ता भी दिलवाई। मगर खुद किसी पद को स्‍वीकार करने से कोसों दूर रहे। हालांकि शुरुआती दौर में उन्‍हें सफलता नहीं मिली लेकिन बाद में वे धीरे-धीरे सत्‍ता के गलियारे में पहुंचने कामयाब रहे। अपने संघर्षपूर्ण तेवर के चलते वे महाराष्‍ट्र की सत्‍ता में भी छाए।

23 जनवरी 1926 को जन्मे बालासाहेब का बचपन पहले पुणे उसके बाद ठाणे में बीता। ठाकरे बचपन से ही काफी प्रतिभावान थे। वह पूरी तरह मराठी संस्कृति में रच-बस गए। उनकी आवाज काफी करिश्माई थी, जिसमें भीड़ को अनायास खींचने का माद्दा था।

उनके अंदर एक कार्टूनिस्ट ने बचपन में ही जन्म ले लिया। उनके कार्टून इतने असरकारक थे कि बाद में जाकर कई अखबारों में छपने लगे। साठ के दशक में ठाकरे ने कार्टून साप्ताहिक `मार्मिक` का प्रकाशन भी शुरू किया। अपने बढ़ते कारवां के बीच उन्‍होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मराठी समाज के हितों और अधिकारों की रक्षा की खातिर लड़ने के लिए उन्होंने 19 जून 1960 में शिवसेना की स्थापना की। शुरुआत में उन्‍होंने सैकड़ों लोगों को रोजगार मुहैया करवाने में मदद की और बाद तक यह सिलसिला जारी रहा। उनकी लोकप्रियता का यह भी एक बड़ा कारण रहा है।

अपने राजनीतिक जीवन में मराठी का हमेशा पक्ष लेने की पहल के चलते इसका उन्‍हें काफी लाभ मिला और उनकी राजनीतिक पार्टी दिन-ब-दिन सशक्‍त होती चली गई। युवाओं ने उन्‍हें अपना सिरमौर मान लिया। मराठी भाषा और संस्कृति के पैरोकर बालासाहेब मराठी मानुस के लिए इतने ज्यादा समर्पित रहे कि उनकी राह में जो भी आया, उससे उनका आमना-सामना हुआ। उन्होंने हालांकि कभी किसी भी व्यक्ति या समुदाय का सीधे विरोध नहीं किया, वह तो बस मराठी समाज को उसका अधिकार देने की पैरवी करते रहे।

छह दशक से ज्यादा के सार्वजनिक जीवन में बालासाहेब हमेशा किसी न किसी विवाद में रहे। सबसे बड़ा विवाद उनकी हिंदुत्व विचारधारा पर हुआ। उनके व्यक्तित्व पर हालांकि बारीकी से गौर करें ते ये धारणा सच से एकदम परे लगती है। पाकिस्तान के प्रति थोड़ा नरम रुख रखने वालों का बालासाहेब हमेशा विरोध करते रहे। यही कारण रहा कि भारत और पाकिस्‍तान के बीच क्रिकेट मैच के जरिये कूटनीति का भी उन्‍होंने विरोध किया और इसकी हमेशा खिलाफत करते रहे।

हिंदू संस्कृति के पैरोकार बालासाहेब वेलेंटाइन डे को हिंदू सभ्यता के अनुकूल नहीं मानते थे। पश्चिमी संस्‍कृति को देश के लिए घातक बताते हुए उनके कार्यकर्ता हमेशा वेलेंटाइन्स डे का विरोध करते रहे। अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद मुंबई में दो चरण में भड़के दंगों में बाल ठाकरे की भूमिका बहुत विवादास्पद रही। कानूनी शिथिलता के चलते उनसे जुड़े मुकदमे अंजाम तक नहीं पहुंच सका। मुंबई दंगों की जांच करने वाले श्रीकृष्ण आयोग ने दिसंबर 1992 और जनवरी 1993 के लिए सीधे तौर पर बाल ठाकरे को जिम्मेदार ठहराया था। सत्तर के दशक तक छोटी पार्टी ही रही शिवसेना को ठाकरे के करिश्मा ने अस्सी के दशक में सशक्त जनाधार वाली पार्टी बना दिया। खरी-खरी बात कहने और विवादास्‍पद बयानों के कारण वे मृत्‍युपर्यंत सुर्खियों में बने रहे।

First Published: Monday, November 19, 2012, 18:07

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