धूल प्रदूषण से पिघल रहे हैं हिमालय के हिमनद!

धूल प्रदूषण से पिघल रहे हैं हिमालय के हिमनद!

धूल प्रदूषण से पिघल रहे हैं हिमालय के हिमनद!बेंगलुरु : इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ क्रायोस्फेरिक साइंसेज (आईएसीएस) ने एक ऐसे कार्य समूह की पेशकश की है, जो हिमालय के हिमनदों व बर्फ के तेजी के साथ पिघलने पर धूल और जंगलों में लगने वाली आग से निकलने वाले काले धुएं के असर का अध्ययन करेगा। स्विट्जरलैंड के दावोस में हाल ही में हुई एक बैठक में यह निर्णय लिया गया।

क्रायोस्फर जमीन के उस हिस्से को कहते हैं, जहां पानी बर्फ के रूप में होता है, आसपास बर्फ और ग्लेशियर जमे होते हैं। इस क्षेत्र में अंर्तर्राष्ट्रीय समन्वय से शोध को बढ़ावा देने के लिए 2007 में इंटरनेशनल यूनियन ऑफ जिओलॉजी एंड जिओफिजिक्स (आईयूजीजी) ने आईएसीएस को अलग संगठन बनाया था।

कैलिफोर्निया की चैपमैन युनिवर्सिटी के अर्थ एंड एनवायरमेंटल सांइसेज में भारतीय तकनीकी संस्थान के पूर्व प्रोफेसर रमेश सिंह से आईएसीएस ने इन उद्देश्यों के विस्तृत प्रस्ताव बनाने को कहा है। सिंह ने माइक्रावेव रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट का प्रयोग कर हिमालय क्षेत्र में बड़े पैमाने पर आंकड़े जुटाए हैं।

सिंह ने बताया कि भारत के पश्चिमी भाग में धूल सामान्य बात है और हर साल अप्रैल-जून के दौरान यह हिमालय के पश्चिमी हिस्से में पहुंचती है। उन्होंने बताया कि धूल वातावरण में जल वाष्प और कार्बन मोनोऑक्साइड भी बढ़ाती है, जो क्षोभ मंडल और मुख्य रूप से हिमालय के पश्चिमी हिस्से को गर्म करती है, जिससे हिमनद और बर्फ पिघल रहे हैं। भारत के पूर्वी देशों में जंगलों में आग लगती रहती है। जिससे कार्बन निकलता है, जो हिमालय के पूर्वी हिस्सों में के हिमनदों को प्रभावित करता है। सिंह ने कहा कि यह कहना मुश्किल है कि हिमनद को कौन ज्यादा प्रभावित करता है, धूल या कार्बन।

उन्होंने कहा कि सिद्धांतत: कार्बन ज्यादा प्रभावशाली है, लेकिन सामान्यत: धूल की मात्रा काले कार्बन से काफी अधिक होती है। इसलिए धूल का प्रभाव ज्यादा हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह वाकई में धूल और कार्बन की अनुपातिक सघनता पर आधारित होती है। इसे समझने के लिए एक समन्वित अध्ययन की जरूरत है। (एजेंसी)

First Published: Tuesday, August 6, 2013, 19:45

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