‘प्लास्टिक की खाली बोतलों से रौशन होंगी देश की झुग्गियां’

‘प्लास्टिक की खाली बोतलों से रौशन होंगी देश की झुग्गियां’

‘प्लास्टिक की खाली बोतलों से रौशन होंगी देश की झुग्गियां’ जालंधर : देश भर में नयी-नयी खोजों को बढ़ावा देने वाले विज्ञान भारती ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे खाली और बेकार पड़ी प्लास्टिक के बोतलों में पानी भर कर बिना किसी खर्च के देश के विभिन्न महानगरों की चौडी चौडी सडकों के किनारे बनी करोडों अंधेरी झुग्गियों को रौशन करने में सहायता मिलेगी। विज्ञान भारती ने राष्ट्रीय पर्यावरण एवं उर्जा विकास अभियान (एनईईडीएम) की सहायता से सूरज और सडकों के किनारे खडे खंभों पर लगे हैलोजन के प्रकाश का इस्तेमाल कर झुग्गियों को बिल्कुल मुफ्त में रौशन करने के इंडोनेशियाई फार्मूले को विकसित किया है।

जालंधर के लवली प्रोफेशनल युनिवर्सिटी परिसर में आज समाप्त होने वाले तीसरे अखिल भारतीय विज्ञान सम्मेलन एवं प्रदर्शनी में इस पूरी प्रक्रिया को दिखाया गया है। विश्वविद्यालय परिसर में अंधेरी झुग्गी की एक डमी बनायी गयी है । इसमें प्लास्टिक की खाली बोतलों में पानी भर कर उसे प्रकाशित किया गया है। प्रदर्शनी में आकषर्ण का केंद्र बनी इस झुग्गी को देखने के लिए पंजाब भर से लोग आ रहे हैं। इस तकनीक को विकसित करने वाले विज्ञान भारती के राष्ट्रीय समन्वयक अमित कुलकर्णी ने बताया, आमतौर पर झुग्गियों में खिडकियां नहीं होती। उसमें रहने वाले लोगों के लिए रात और दिन में कोई फर्क नहीं होता है । हमने पानी भरी प्लास्टिक की बोतल को छत में छेद कर ऐसे लटकाया जिससे उसका आधा हिस्सा उपर की ओर और आधा हिस्सा अंदर की ओर हो।

कुलकर्णी ने कहा, इस प्रक्रिया में बोतल में भरा पानी सूरज के प्रकाश को रिफलेक्ट कर कमरे को पूरी तरह रौशन करता है । डमी झुग्गी के अंदर इस प्रक्रिया से इतनी रौशनी है कि आप किताब भी पढ़ सकते हैं। रात में सडकों के किनारे खंभों में लगे हैलोजन के प्रकाश को भी यह प्रतिबिंबित करता है और घर में काम करने के लिए जितनी रोशनी चाहिए उतनी इससे मिलती है। यह पूछने पर कि बरसात के दिनों में या सूर्यास्त के बाद रोशनी कैसे आएगी, कुलकर्णी ने कहा, बरसात के दिनों में भी दिन के वक्त प्रकाश तो होता है यह उसे प्रतिबिंबित करेगा। रही बात शाम के वक्त तो झुग्ग्गी जंगलों या सुनसान स्थानों पर तो होती नहीं। सडकों के किनारे खंभों पर लगे हैलोजेन के प्रकाश से भी यह कमरे को रौशन करेगा।’उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन से थोडा हटकर बनी झुग्गियों में इसका प्रयोग किया गया और यह सफल रहा। हम जल्दी ही इस तरीके से देश के अन्य हिस्सों में भी झुग्गियों को रौशन करने की कोशिश करेंगे।

यह पूछे जाने पर कि बोतल के पानी को बार बार बदलना होगा, उन्होंने कहा, हां, बदला जा सकता है लेकिन इसमें अगर ब्लीचिंग पाउडर और नमक मिला दिया जाए तो पानी बदलने की जरूरत नहीं होगी। इससे रोशनी भी और तेज होगी । ब्लीचिंग पाउडर पानी में काई और फफूंद बनने से रोकेगा। दूसरी ओर मध्य प्रदेश सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के महानिदेशक तथा विज्ञान भारती के उपाध्यक्ष प्रमोद वर्मा ने कहा, हमने भोपाल और अन्य शहर में झुग्गियों को रौशन करने के लिए ऐसा प्रयोग किया है। यह सफल रहा है।

वर्मा ने कहा, हमारी सरकार इस योजना को बढ़ावा दे रही है। हालांकि अब झुग्गियों को हटाने की योजना है। उनकी जगह पर पक्के मकान बन रहे हैं। फिर भी जबतक झुग्गी पूरी तरह नहीं हटती तबतक हम इसका प्रयोग जारी रखेंगे। हमारी योजना अन्य इलाकों की झुग्गियों में भी इसका प्रयोग करने की है। उन्होंने कहा, यह झुग्गियों में ही क्यों। अगर इस तकनीक को और विकसित किया गया तो इससे झुग्गियों के स्थान पर बनाये जाने वाले पक्के मकानों को भी रौशन करने में सहायता मिलेगी। हमने विज्ञान भारती और प्रौद्योगिकी के छात्रों से इस तकनीक को और विकसित करने के लिए कहा है।

विज्ञान भारती के महासचिव जय कुमार अप्पाकुट्टन ने कहा, प्रकृति ने हमें उपहार के तौर पर अनमोल चीजें दी हैं। जरूरत है उनकी पहचान और उनका दोहन कर उसे इस्तेमाल में लाने की। उन्होंने कहा, संगठन का लक्ष्य वातारवरण के अनुकूल और बिना किसी खर्च के इसे देश की बीस करोड झुग्गियों में लगा कर उन्हें रौशन करना है । यह दिन के वक्त तो प्रकाश का एक विकल्प है ही रात के दौरान भी हैलोजेन लाइटों की रौशनी को एबजॉर्व कर यह झुग्गियों को प्रकाशित करेगा। (एजेंसी)

First Published: Sunday, October 14, 2012, 13:11

comments powered by Disqus