Last Updated: Sunday, December 11, 2011, 18:47

डरबन : जलवायु परिवर्तन के सम्बंध में दक्षिण अफ्रीका के डरबन शहर में आयोजित संयुक्त राष्ट्र वार्ता, उपायों के एक पैकेज पर सहमति के साथ समाप्त हो गयी। वार्ता के अध्यक्ष ने इस सहमति को संतुलित करार दिया। वार्ता तय समय से 36 घंटे अधिक चली। शिखर सम्मेलन के समापन सत्र में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन का जोरदार भाषण छाया रहा। नटराजन ने चेतावनी दी कि भारत किसी भी खतरे या दबाव के आगे नहीं झुकेगा।
नटराजन के भाषण के कारण ही भारत की मुख्य चिंता (जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में बराबरी के सिद्धांत को शामिल कराना) पैकेज का हिस्सा बनी। पैकेज में कहा गया है कि सभी देश ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन पर नियंत्रण करने के लिए एक वैश्विक समझौते का अंग होंगे। नटराजन ने कहा कि प्रोटोकाल या किसी कानूनी व्यवस्था के अलावा एक तीसरा विकल्प भी है। वह विकल्प है -कानूनी ताकत के साथ एक मान्य निष्कर्ष।
तीसरा विकल्प एक नाटकीय गतिरोध के बाद प्रारूप में शामिल हुआ। इस दौरान जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन पर संयुक्त राष्ट्र प्रारूप संधि का पूर्ण अधिवेशन रुक गया। इसके दो मुख्य सूत्रधार थे। एक नटराजन और दूसरे यूरोपीय संघ जलवायु परिवर्तन आयुक्त कोन्नी हेडेगार्ड। हेडेगार्ड ने बंद दरवाजे के पीछे बनी सहमतियों पर आपत्ति खड़ी कर विवाद की शुरुआत की।
भारत तीसरे विकल्प के रूप में एक कानूनी परिणाम चाहता था, लेकिन हेडेगार्ड ने कहा कि इससे देशों की ईमानदारी पर संदेह खड़ा होगा। इस पर नटराजन भड़क उठीं। उन्होंने कहा, हमने किसी भी अन्य देश की बनिस्पत अधिक लचीलापन दिखाया है। निष्पक्षता केंद्रीय मुद्दा है, इसके साथ कोई समझौता नहीं होगा।
नटराजन ने कहा, क्या जलवायु परिवर्तन से लड़ने का अर्थ यह है कि हम निष्पक्षता के सवाल पर घुटने टेक दें? हम प्रोटोकाल और कानूनी औजार पर सहमत हैं। आखिर एक और विकल्प होने में समस्या क्या है? भारत किसी भी खतरे या किसी भी तरह के दबाव के आगे नहीं झुकेगा। यह कानूनी औजार क्या है? मैं ब्लैंक चेक क्यों दू?
नटराजन ने कहा, यदि ऐसा होता है तो हम पूरे डरबन पैकेज को फिर से खोलने को तैयार हैं। हमने कोई धमकी नहीं दी है। बल्कि हमें बलि का बकरा बनाया जा रहा है? कृपया हमें मजबूर न करें। खचाखच भरे सभाकक्ष में तालियों की गड़गड़ाहट के बीच नटराजन का भाषण जब समाप्त हुआ तो कुछ देशों ने यूरोपीय संघ का समर्थन किया, लेकिन चीन ने भारत का मजबूती के साथ समर्थन किया।
इसके बाद सम्मेलन के अध्यक्ष और दक्षिण अफ्रीका के विदेश मंत्री मैती नकोने माशाबाने ने सत्र की कार्यवाही रोक दी और यूरोपीय संघ तथा भारत से कहा कि वे आपस में बातीचीत कर लें। जब सत्र फिर से शुरू हुआ तो नटराजन ने घोषणा की कि भारत नरमी और समझौते की भावना के साथ तीसरे विकल्प की भाषा में बदलाव करने पर सहमत है।
बीबीसी के अनुसार, चार आयामी डरबन पैकेज के तहत धनी देश अब क्योटो प्रोटोकाल के तहत 2013 से अपने उत्सर्जन में कटौती करने पर सहमत हुए हैं। विकासशील देशों की यह एक प्रमुख मांग रही है। सभी देशों को दायरे में लेने वाले नए कानूनी समझौते पर वार्ता अगले वर्ष शुरू होगी और 2015 तक समाप्त हो जाएगी और यह 2020 तक प्रभावी होगी।
गरीब देशों के लिए जलवायु सहायता कोष के प्रबंधन पर भी सहमति बन गई है, लेकिन धन कहां से आएगा और कैसे जुटाया जाएगा, इस बारे में कोई स्थिति साफ नहीं हो पाई है। वार्ता निधारित समय सीमा से लगभग 36 घंटे अधिक समय तक चली। कई प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि मेजबान सरकार के पास गम्भीरता और रणनीति का अभाव है।
प्रारूप यूरोपीय संघ, लघु द्विपीय राज्यों के संघ और अल्प विकसित देशों के गुट द्वारा तैयार किया गया था। ये तीनों संगठन इस बात को लेकर चिंतित थे कि सभी देशों (खासतौर से तेजी के साथ वृद्धि कर रहे बड़े उत्सर्जनकताओं, जैसे कि चीन) को दायरे में लेने वाले नए कानूनी समझौते के बगैर वैश्विक औसत तापमान, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित, दो डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की सीमा लांघ जाएगा।
(एजेंसी)
First Published: Monday, December 12, 2011, 12:26