Last Updated: Wednesday, August 22, 2012, 14:34

संयुक्त राष्ट्र : भारत से लेकर अफ्रीका तक के किसानों के सामने कम बारिश की चुनौती को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने के लिए साझे प्रयास करने का आह्वान किया है ताकि जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभाव वैश्विक खाद्य सुरक्षा को प्रभावित न कर सकें।
विश्व मौसमविज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के महासचिव माइकल जैरॉड ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘जलवायु परिवर्तन ने सूखा पड़ने की आवृत्ति, तीव्रता और समयसीमा बढ़ा दी है। इसका प्रभाव खाद्य, जल और उर्जा समेत कई क्षेत्रों पर पड़ता है।’ उन्होंने कहा कि हमें सिर्फ संकट के समय कारगर होने वाली नीतियों की बजाय ऐसी समन्वित राष्ट्रीय सूखा नीतियां बनानी चाहिए जो आसन्न सभी खतरों को समाहित करती हों। डब्ल्यूएमओ और यूएन कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन संयुक्त राष्ट्र की अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर ऐसी समन्वित और सक्रिय रणनीति बनाने का प्रयास कर रहे हैं जो कि विश्व के देशों की नीतियों की खामियों को पूरा करने में समर्थ हो।
अगले साल मार्च में स्विजरलैंड के जेनेवा में ‘राष्ट्रीय सूखा नीति’ पर एक उच्च स्तरीय सम्मेलन आयोजित किया जाना है। भारत की स्थिति की ओर इशारा करते हुए डब्ल्यूएमओ में (क्लाइमेट प्रिडिक्शन एंड एडेपटेशन ब्रांच) के निर्देशक मन्नावा सिवाकुमार ने कहा कि देशभर में सामान्य से भी 17 प्रतिशत कम बारिश हुई है। जिससे भारत को गंभीर सूखे का सामना करना पड़ रहा है। भारत का ‘अनाज का कटोरा’ कहलाने वाले पंजाब में तो बारिश की मात्रा सामान्य से 70 प्रतिशत तक कम हो गई है। जून में शुरू होने वाले दक्षिणपश्चिमी मानसून सत्र से जुलाई के अंत तक देश के 624 जिलों में से लगभग आधे जिलों में बहुत कम बारिश ही हुई थी। जून से लेकर अगस्त तक का समय मानसून मौसम का पूर्वार्ध भाग माना जाता है। इस समय में बरसी बारिश का कुल औसत सिर्फ 81 प्रतिशत ही रहा। जबकि पूर्वोत्तर इलाकों में यह औसत सिर्फ 65 प्रतिशत था।
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि अगर भारत में बारिश का औसत 90 प्रतिशत से कम रहता है तो उससे सूखा पड़ जाता है। वैश्विक खाद्य कीमतों पर इस सूखे का प्रभाव बताते हुए सिवाकुमार ने कहा कि अमेरिका का एक चौथाई भाग सूखे से ग्रस्त है। देश सन् 1895 के बाद से अब तक के 12 महीने के सबसे लंबे सूखे का सामना कर रहा है। उन्होंने कहा कि अमेरिका में सोयाबीन और मक्का की खेती पर सूखे के प्रभाव से खाद्य कीमतों पर भी भारी असर पड़ा है।
यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव लुक ग्नाक्दजा ने कहा कि सूखे के दीर्घकालीन परिणामों से निपटने के लिए इसे राष्ट्रीय विकास योजनाओं और नीतियों में शामिल किया जाना चाहिए। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, August 22, 2012, 14:34