Last Updated: Tuesday, August 21, 2012, 19:38

गाह (पाकिस्तान) : गुलाम मुहम्मद खान यह मान बैठे थे कि 1947 में बंटवारे के वक्त उनका एक मेधावी सहपाठी मारा गया, लेकिन कुछ साल पहले भारत के प्रधानमंत्री के पद पर मनमोहन सिंह के आसीन होने के बाद उनका यह मिथक टूटा और उन्हें बेतहाशा खुशी भी हुई क्योंकि उनका यह बचपन का दोस्त इस मुकाम पर पहुंचा था।
खान के अलावा पंजाब के गाह गांव के सभी बाशिंदे खुश थे क्योंकि उन्हें यहां मनमोहन के नाम पर विकास की उम्मीद जगी। उनकी उम्मीद कुछ परवान भी चढ़ती नजर आईं, लेकिन यहां विकास का काम अब भी अधूरा है।
उन्होंने कहा, वह हमारे सहपाठी थे और हम साथ खेलते थे। वह एक सज्जन और मेधावी बच्चे थे। हमारे उस्ताद हमेशा सलाह देते थे कि अगर कुछ समझ में नहीं आए तो उनकी (मनमोहन) मदद ली जाए। प्रधानमंत्री बनने के बाद मनमोहन ने गाह के 2,500 ग्रामीणों के विकास की इच्छा जताई थी। खान कहते हैं, मैंने कभी सोचा नहीं था कि मनमोहन एक दिन हमारे गांव के लिए बड़ी नेमत लाएंगे। उन्होंने वो सब किया जो हमारी सरकार अब तक करने से बचती रही है।
मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बने आठ साल हो गए, लेकिन उनके गांव में विकास अब भी अधूरा है। राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने उन्हें इस साल के आखिर में पाकिस्तान के दौरे पर बुलाया है। ऐसे में गांव में विकास का अधूरापन पाकिस्तान की सरकार के लिए किरकिरी का सबब बन सकता है। भारतीय प्रधानमंत्री ने गाह को मॉडल गांव बनने की सपना देखा था, जो अभी पूरा नहीं हुआ है। यहां कई इमारतों का काम अभी बाकी है। सवाल यही है कि पाकिस्तान इसे पूरा करने के लिए कुछ करेगा? पद संभालने के बाद मनमोहन ने तत्कालीन शासक परवेज मुशर्रफ को पत्र लिखकर कहा था कि उनके गांव में विकास कार्य किए जाएं। इस पर मुशर्रफ ने विकास कार्य शुरू किए, लेकिन यह पूरा नहीं हो सका। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, August 21, 2012, 19:37