Last Updated: Tuesday, August 21, 2012, 19:38
गुलाम मुहम्मद खान यह मान बैठे थे कि 1947 में बंटवारे के वक्त उनका एक मेधावी सहपाठी मारा गया, लेकिन कुछ साल पहले भारत के प्रधानमंत्री के पद पर मनमोहन सिंह के आसीन होने के बाद उनका यह मिथक टूटा और उन्हें बेतहाशा खुशी भी हुई क्योंकि उनका यह बचपन का दोस्त इस मुकाम पर पहुंचा था।