Last Updated: Wednesday, January 18, 2012, 17:24
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अंतरजातीय विवाह से जन्में बच्चों को आरक्षण के लाभ से वंचित केवल इस आधार पर नहीं किया जा सकता कि उनके माता पिता में से कोई एक उच्च जाति का है। न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति प्रकाश देसाई की पीठ ने रमेशभाई दभाई नाइका की गुजरात सरकार के फैसले को अपील करने वाली याचिका को बरकरार रखते हुए ये बातें कहीं। गुजरात सरकार ने याचिकाकर्ता को अनुसूचित जनजाति के तहत आरक्षण देने से इनकार कर दिया था क्योंकि उसके पिता उच्च क्षत्रिय समुदाय के थे।
पीठ ने कहा, अंतरजातीय विवाह या आदिवासी और गैर आदिवासी के बीच विवाह से जन्में बच्चे का जाति निर्धारण प्रत्येक मामले में अंतर्निहित तथ्यों के आधार पर होना चाहिए। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि अंतरजातीय विवाह या आदिवासी और गैर आदिवासी के बीच विवाह में एक पूर्व धारणा हो सकती है कि बच्चे को पिता की जाति मिले ।
उन्होंने कहा कि यह पूर्व धारणा उस मामले में और मजबूत हो सकती है जब आदिवासी और गैर आदिवासी के बीच विवाह में पति उच्च जाति का को लेकिन यह पूर्व धारणा किसी भी तरीके से निर्णायक नहीं हो सकता और ऐसे विवाह से जन्मा बच्चा यह सबूत दिखा सकता है उसकी परवरिश अनुसूचित जाति जनजाति से संबंध रखने वाली माता ने की। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, January 18, 2012, 22:54