Last Updated: Saturday, September 24, 2011, 15:48
नई दिल्ली : लोकपाल विधेयक पर गौर कर रही संसद की स्थायी समिति की बैठक में शनिवार को अन्ना हज़ारे के जनलोकपाल विधेयक मसौदे की तीखी आलोचना की गयी, समिति को अपने विचारों से अवगत कराने आये अधिकतर पक्षों ने हज़ारे के मसौदे को ‘संविधानेत्तर’ करार दिया. कार्मिक, जन शिकायत और विधि तथा न्याय मामलों की स्थायी समिति के समक्ष दिये बयानों में विधि और संविधान विशेषज्ञों ने मौजूदा भ्रष्टाचार निरोधी संस्थानों को मजबूत करने का पक्ष लिया. इन विशेषज्ञों ने कहा कि न्यायपालिका, सांसदों और प्रधानमंत्री पद को प्रस्तावित लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए.
लोकसत्ता पार्टी के जयप्रकाश नारायण, ‘सेंटर फॉर पोलिसी रिसर्च’ के प्रताप भानू मेहता, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अशोक पारिजा, जाने माने वकील हरीश साल्वे और जस्टिस पार्टी के प्रमुख उदित राज ने समिति के समक्ष अपने विचार रखे. नारायण ने दावा किया कि हज़ारे के जनलोकपाल पर अमल हुआ तो वह किसी संवैधानिक निकाय से भी उपर हो जायेगा. ऐसा होना देश के लिये ‘खतरनाक’ साबित होगा. उन्होंने न्यायपालिका और उसमें भ्रष्टाचार के आरोपों के मामलों से निपटने के लिये राष्ट्रीय न्यायिक आयोग के गठन का पक्ष लिया.
साल्वे ने समिति को बताया कि जनलोकपाल की स्थापना ‘असंवैधानिक’ होगी क्योंकि इससे एक ऐसा एकांगी प्राधिकार बन जायेगा जो संविधान के तहत प्रदत्त स्वतंत्रता को नष्ट कर देगा. समझा जाता है कि साल्वे ने भ्रष्टाचार रोकथाम कानून जैसे मौजूदा कानूनों को मजबूत करने और सीबीआई तथा केंद्रीय सतर्कता आयोग जैसे संस्थानों के सशक्तीकरण का पक्ष लिया.
मेहता और पारिजा ने अनुच्छेद 105 की शुचिता बनाये रखने का पक्ष लिया. यह अनुच्छेद संसद सदस्यों को संसद के भीतर उनके आचरण से जुड़े कुछ अधिकार और विशेषाधिकार देता है. माना जाता है कि मेहता ने प्रधानमंत्री पद और गैर-सरकारी संगठनों को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने का पक्ष लिया. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री देश के मुख्य कार्यकारी अधिकारी की तरह होते हैं. उन्हें लोकपाल के दायरे में रखने से संसद कमजोर होगी.
नारायण ने कहा कि मीडिया को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए, लेकिन लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ के कामकाज पर नजर रखने के लिये एक पृथक और प्रभावी कानून बनाया जाये क्योंकि पेड न्यूज और गलत खबरों के मामलों से निपटना जरूरी है. इस बीच, समिति के अध्यक्ष अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि दो दिन तक 10 घंटे चली चर्चा सार्थक रही. उन्होंने उम्मीद जतायी कि संसद को रिपोर्ट समय पर सौंपने के लिये समिति के सदस्य इस गतिशीलता को बनाये रखेंगे.
(एजेंसी)
First Published: Saturday, September 24, 2011, 21:18