Last Updated: Monday, August 5, 2013, 15:30

नई दिल्ली : लोकसभा में आज सदस्यों ने आरक्षण के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय के हाल के फैसले की कडी आलोचना करते हुए मांग की कि ऐसा कोई रास्ता निकाला जाए, जिससे सामाजिक विषमता को दूर करने वाले संसद की ओर से उठाये गये कदमों को अदालतें निरस्त न करने पायें। सदस्यों ने दावा किया कि यह फैसला देश की 80 प्रतिशत आबादी को बुरी तरह प्रभावित करेगा, जिसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछडे वर्ग के लोग शामिल हैं।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के शिक्षकों को नियुक्ति और पदोन्नति में आरक्षण नहीं देने के शीर्ष अदालत के फैसले को लेकर सदस्यों ने संसद की सर्वोच्चता के क्षरण पर चिन्ता का इजहार किया और उच्चतम न्यायालय के फैसले को निरस्त करने के लिए संविधान में तत्काल संशोधन की मांग की। शून्यकाल में जदयू के शरद यादव ने यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि अदालतें लगातार ऐसे कानूनों में बदलाव कर रही हैं, जो कमजोर वर्ग के फायदे के लिए हैं।
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने में अच्छा कार्य कर रही है लेकिन ऐसे कानूनों को नकार रही हैं जो आरक्षण जैसे सामाजिक मुद्दों पर सभी दलों द्वारा सर्वसम्मति से पारित किये गये हैं। यादव ने कहा, वे हमेशा ऐसा कुछ करते हैं कि संसद न चलने पाये। उन्होंने पूर्व प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर के कार्यकाल के अंतिम दिन संविधान पीठ द्वारा इस तरह का आदेश जारी करने पर अफसोस व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि चिन्ता की बात यह है कि उच्चतम न्यायालय का आदेश केवल एम्स पर ही नहीं बल्कि इस तरह के सभी संस्थानों पर लागू होता है।
यादव ने कहा कि आरक्षण का लक्ष्य जनता के लंबे संघर्ष के बाद काफी मेहनत से हासिल किया गया है। देश की 80 प्रतिशत आबादी के अधिकारों को बरकरार रखने के लिए सरकार को कोई रास्ता निकालना चाहिए। जदयू नेता की बात का समर्थन करते हुए सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने जानना चाहा कि कमजोर वर्ग के लोग क्या केवल फर्श साफ करने के लिए या चपरासी या चौकीदार होने के लिए बने हैं। उन्होंने कहा कि अदालत के इस फैसले से लोगों में बहुत अधिक रोष और बेचैनी है।
उन्होंने आगाह किया कि यदि सरकार ने उच्चतम न्यायालय के आदेश को निरस्त करने के लिए कदम नहीं उठाया तो देश भर में विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। बसपा के दारा सिंह चौहान ने कहा कि यदि सरकार ने राज्यसभा में पारित हो चुके प्रोन्नति में आरक्षण विधेयक को लोकसभा में भी पिछले सत्र में पारित करा दिया होता तो ऐसे हालात नहीं पैदा होते।
कांग्रेस के पी एल पुनिया ने कहा कि यह अफसोस की बात है कि आरक्षण के जरिए कमजोर वगो’ को न्याय दिलाने के लिए संसद ने जो महत्वपूर्ण फैसले और संविधान संशोधन किये, उच्चतम न्यायालय ने उन पर विचार नहीं किया। उन्होंने सवाल किया कि क्या शीर्ष अदालत की केवल पांच सदस्यीय पीठ देश और संसद में बैठे प्रतिनिधियों का भविष्य तय करेगी। उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में हाल ही में कहा कि प्रतिष्ठित एम्स सहित देश के मेडिकल कालेजों में स्पेशियेलिटी एवं सुपर स्पेशियेलिटी पाठ्यक्रमों में शिक्षकों की नियुक्ति में कोई आरक्षण नहीं दिया जा सकता। पूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने एम्स के शिक्षकों की एसोसिएशन द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ की गयी अपील पर उक्त फैसला दिया। (एजेंसी)
First Published: Monday, August 5, 2013, 15:30