Last Updated: Thursday, August 23, 2012, 23:21

नई दिल्ली : कर्नाटक में निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा 35 लाख मीट्रिक टन लौह अयस्क के कथित रूप से गैरकानूनी तरीके से निर्यात करने के तथ्य से विस्मित उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि वह इसके लिए दोषी व्यक्तियों को छह महीने के भीतर दंडित करने की संभावना तलाशना चाहता है।
न्यायमूर्ति आफताब आलम, न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की तीन सदस्यीय विशेष खंडपीठ ने आज गैर सरकारी संगठन समाज परिवर्तन समुदाय की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सारी स्थिति पर चिंता व्यक्त की। इस संगठन ने कर्नाटक में गैरकानूनी तरीके से चल रही खनन गतिविधियां और वन क्षेत्र में अतिक्रमण को लेकर यह याचिका दायर कर रखी है। न्यायाधीशों ने केन्द्रीय अधिकार प्राप्त समिति से कहा कि इसके लिए दोषी व्यक्तियों को छह महीने के भीतर सजा दिलाने के व्यावहारिक विकल्प के बारे में सुझाव दे। न्यायालय ने इसके साथ ही इस मामले की सुनवाई सात सितंबर के लिए स्थगित कर दी।
न्यायाधीशों ने कहा कि यह मान लिया जाए कि इसमें केन्द्रीय जांच ब्यूरो की जांच हो, तो इस जांच को पूरा होने में महीने और साल भी लग सकते हैं। वे सैकड़ों गवाहों से पूछताछ करेंगे और टनों सामग्री पेश करेंगे। लेकिन हम चाहते हैं कि जांच का काम छह महीने के भीतर पूरा हो। इससे पहले, इस मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने न्यायालय को सूचित किया कि 35 लाख मीट्रिक टन में से आठ लाख मीट्रिक टन लौह अयस्क अधिकारियों ने जब्त करने न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेशों पर कब्जे में रखा गया था लेकिन इसके बावजूद इसे देश से बाहर निर्यात कर दिया गया। श्याम दीवान के इस रहस्योद्घाटन पर न्यायाधीश बेहद नाराज हुए।
न्यायाधीशों ने कहा कि यदि राज्य सरकार का महकमा आंख मूंदे बगैर ठीक से काम कर रहा होता तो यह सब नहीं होता। केन्द्रीय अधिकार प्राप्त समिति ने 27 अप्रैल को अपनी रिपोर्ट में राज्य के बेलकेरे तट से गैरकानूनी तरीके से लौह अयस्क के निर्यात के मामले की केन्द्रीय जांच ब्यूरो से जांच की सिफारिश की थी। गैरकानूनी तरीके से लौह अयस्क के निर्यात में कुछ व्यापारी घरानों के शामिल होने का आरोप है।
इस अनियमितता की व्यापकता को देखते हुए न्यायालय ने श्याम दीवान से कहा कि न्याय मित्र के नाते हम आपसे जानना चाहते हैं कि इसकी जांच को कैसे गति दी जाए। हमें उपाय बताएं। इस मामले में पिछली बार सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा था कि वह कर्नाटक की लौह अयस्क खदानों के क्षेत्र में भूमि सुधार और पुनर्वास के उपायों पर पूरी तरह अमल होने के बाद ही वहां खनन गतिविधियां पुन: शुरू करने की अनुमति देगा।
न्यायालय ने 13 अप्रैल को केन्द्रीय अधिकार प्राप्त समिति की इस सिफारिश को स्वीकार कर लिया था कि बेल्लारी, तुमकुर और चित्रदुर्गा जिलों में खदानों के मौजूदा पट्टों में पुनर्वास योजना पर अमल के बगैर खनन के लिए कोई नया पट्टा नहीं दिया जाए। (एजेंसी)
First Published: Thursday, August 23, 2012, 23:21