Last Updated: Monday, January 2, 2012, 05:20
नई दिल्ली: ऐसा लगता है सरकारी दखल और बाहरी दबाव से मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी भी परेशान हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव आयुक्तों को संरक्षण देने के लिए संवैधानिक संशोधनों की जरूरत है। साथ ही उन्होंने सबसे वरिष्ठ चुनाव आयुक्त की मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर स्वत: पदोन्नति की भी वकालत की।
कुरैशी ने कहा, ‘सैद्धांतिक तौर पर यह बहुत खतरनाक स्थिति है। दोनों चुनाव आयुक्त दिन में दस बार मेरे निर्णय को निष्प्रभावी कर सकते हैं और मुझे पूरी तरह असहाय बना सकते हैं। वे सरकार के दबाव में ऐसा कर सकते हैं। सरकार उन्हें हटाने की धमकी या पदोन्नति का आदेश दे सकती है।’ वह इस मुद्दे पर सरकार को पत्र लिखेंगे। उन्होंने कहा, ‘हम बहुत खुलकर यह बात कहते आ रहे हैं। लंबे समय से यह प्रस्ताव लंबित है।’
कुरैशी के पूर्ववर्ती मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी द्वारा चुनाव आयुक्त के पद से नवीन चावला को हटाने की मांग की पृष्ठभूमि में इस कदम को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। सरकार ने गोपालस्वामी की याचिका खारिज कर दी थी।
कुरैशी को लगता है कि दोनों चुनाव आयुक्तों को कानून के तहत संवैधानिक संरक्षण मिलना चाहिए ताकि उन्हें ऐसा नहीं लगे कि वे परिवीक्षा पर हैं। उन्होंने कहा, ‘अन्यथा उन्हें लगेगा कि पूरे समय उनके सिर पर तलवार लटकी रहती है। उन्हें लगेगा कि सरकार उन्हें सीईसी बनाएगी या नहीं।’
कुरैशी ने कहा कि चुनाव आयुक्तों को न केवल संरक्षण दिया जाना चाहिए बल्कि उन्हें वरिष्ठता के आधार पर शीर्ष पद पर नियुक्त किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘मैं मांग कर रहा हूं कि न केवल उन्हें संरक्षण मिलना चाहिए बल्कि वरिष्ठता के आधार पर सीईसी के तौर पर पदोन्नति होनी चाहिए।जब सीईसी की सेवानिवृत्ति होती है तो सबसे वरिष्ठ चुनाव आयुक्त स्वत: ही सीईसी बन जाए। वे खुद को परिवीक्षा पर नहीं समझें।’
परंपरागत रूप से सबसे वरिष्ठ चुनाव आयुक्त पदोन्नत होते रहे हैं लेकिन इस बाबत कोई कानून नहीं है। उन्होंने आशंका जताई, ‘यह केवल परंपरा है। कुछ साहसी सरकारें इस परंपरा को तोड़ने का प्रयास कर सकती हैं।
कुरैशी ने कहा कि ऐसा होना बहुत तार्किक भी है क्योंकि सीईसी को संरक्षण देना किसी व्यक्ति को नहीं बल्कि संस्था को संरक्षण देना है। उन्होंने कहा, ‘सीईसी को प्राप्त संरक्षण संस्था को दिया गया संरक्षण है। संस्थान में तब एक व्यक्ति था अब तीन लोग हैं।’
सीईसी ने कहा कि 1950 में जब चुनाव आयोग का गठन हुआ था तो उन्होंने कल्पना की थी कि पांच साल में एक ही बार चुनाव होंगे। उन्होंने कहा, ‘उन्होंने इस बारे में चर्चा भी की कि एक पूर्णकालिक सीईसी जरूरी है या नहीं। बाद में पूर्णकालिक सीईसी का फैसला किया गया, भले ही कुछ समय तक उनके पास काम नहीं हो।’
उन्होंने कहा, ‘इसलिए 1993 में बहु।सदस्यीय आयोग बनाये जाने के बाद अगला तार्किक कदम तीनों को तत्काल एक समान संरक्षण देना है। लेकिन इसके लिए संविधान संशोधन की जरूरत है। भले ही किन्हीं कारणों से यह नहीं हुआ हो लेकिन अब यह होना चाहिए।’
(एजेंसी)
First Published: Monday, January 2, 2012, 11:12