देश में और न्यायाधीशों की जरूरत : मनमोहन

देश में और न्यायाधीशों की जरूरत : मनमोहन

देश में और न्यायाधीशों की जरूरत : मनमोहननई दिल्ली : देश में जनसंख्या के लिहाज से वर्तमान में न्यायाधीशों के अनुपात को पूरी तरह अपर्याप्त करार देते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आश्वासन दिया कि तीन करोड़ से अधिक लंबित मुकदमों पर ध्यान देने के लिहाज से निचली न्यायपालिका के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए केंद्र से और अधिक धन दिया जाएगा।

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘फिलहाल प्रति दस लाख जनसंख्या पर 15.5 न्यायाधीशों का अनुपात पूरी तरह अपर्याप्त है। हमें इस समीकरण को बदलने की जरूरत है ताकि मामलों के लंबित होने और उन्हें निपटाने में विलंब के मुद्दों पर ध्यान दिया जा सके।’’ वह मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे जिसकी अध्यक्षता भारत के प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर ने की।

मनमोहन ने कहा कि वह प्रधान न्यायाधीश कबीर की इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि न्यायाधीशों की संख्या महत्वपूर्ण तरीके से बढ़ाने की जरूरत है और मुख्यमंत्रियों को इस दिशा में पहल करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि देश की अनेक अदालतों में तीन करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं जिनमें से 26 प्रतिशत पांच साल से अधिक पुराने हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘मैं केंद्र सरकार की ओर से इस सभा को आश्वासन देना चाहूंगा कि हम उस योजना के लिए धन की मात्रा उचित तरीके से बढ़ाएंगे जिसके तहत हम राज्य सरकारों को निचली न्यायपालिका के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए सहयोग देते हैं।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि राज्य सरकारों को विशेष रूप से न्यायिक क्षेत्र के लिए धन देने के लिहाज से केंद्र सरकार 14वें वित्त आयोग के साथ मिलकर काम करेगी और उससे यह अनुरोध भी करेगी कि केवल जघन्य अपराधों के मामलों के लिए ही नहीं बल्कि बुजुर्ग, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ वारदातों के मुकदमों को तेजी से निपटाने के लिए भी फास्ट-ट्रैक अदालतें बनाने के बाबत धनराशि निर्धारित करे। मनमोहन ने कहा कि न्यायिक सुधारों की बढ़ती मांगों के बीच विवेक और तर्क की आवाज आज क्षणिक आवेग में झूठी गवाही में नहीं बदलनी चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘जब न्यायिक सुधारों और कानूनी प्रक्रियाओं में बदलाव की मांग का महत्व बढ़ा है, ऐसे में हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि विवेक और तर्क की आवाज आज के समय में क्षणिक आवेग में झूठी गवाही में नहीं बदलनी चाहिए।’’ मनमोहन ने कहा, ‘‘कानून तथा प्राकृतिक न्याय के मूल तत्व और समय के साथ परखे गये सिद्धांतों से उन तीखे स्वरों को संतुष्ट करने के लिए समझौता नहीं होना चाहिए जो अकसर हमारे राजनीतिक संवाद को परिभाषित करते हैं और कई बार न्याय तथा तर्क की अपीलों को डुबोने में सफल हो जाते हैं।’’ 16 दिसंबर को दिल्ली में घटी सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद देशभर में भड़के गुस्से के चलते कानून और न्याय व्यवस्था के तत्काल निरीक्षण की जरूरत बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार ने जनता द्वारा महसूस की गयी संवेदनशीलताओं पर तेजी से प्रतिक्रिया दी है और महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराधों से प्रभावी तरीके से निपटने में आपराधिक कानून में महत्वपूर्ण संशोधन किये हैं।

मनमोहन ने कहा, ‘‘जहां तक महिलाओं के खिलाफ अपराधों की बात है, काफी कुछ किये जाने की जरूरत है। मुझे खुशी है कि आपके सम्मेलन के एजेंडा में एक मुद्दा लैंगिक विषयों पर न्यायपालिका की संवेदनशीलता का भी है।’’ उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के उन्नयन और 14,249 जिला एवं निचली अदालतों में भी आईसीटी के प्रावधान के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकारें और उच्च न्यायालय तालमेल के साथ काम कर रहे हैं।

मनमोहन ने कहा कि इस परियोजना के महत्वपूर्ण परिणाम के तौर पर राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) तैयार होगा जो देशभर में मामले लंबित होने के न्यायिक आंकड़े उसी समय उपलब्ध कराने का अनूठा प्लेटफार्म होगा। उन्होंने कहा कि एनजेडीजी में निचली न्यायपालिका के कामकाज में बदलाव की क्षमता है।

मनमोहन ने कहा कि जहां सबकुछ पूरी तरह ठीक नहीं है, ऐसी दुनिया में न्यायपालिका की आदर्श स्थिति दूर की बात हो सकती है लेकिन सभी नागरिकों को आत्म-सम्मान और प्रतिष्ठा दिलाने, मानवीय एकजुटता के बंधों को मजबूत करने तथा प्रत्येक व्यक्ति की रचनात्मकता को प्रोत्साहित करने की इसकी क्षमता में एक न्यायसंगत व्यवस्था की कसौटी निहित होती है। उन्होंने कहा कि सरकार ने अदालतों में लंबित मामलों में कमी लाने के उद्देश्य से न्याय विभाग में नेशनल मिशन फॉर जस्टिस डिलिवरी एंड लीगल रिफार्म्ड बनाया है।

मनमोहन ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश ने राष्ट्रीय अदालत प्रबंधन प्रणाली (एनसीएमएस) स्थापित की है जो अदालतों में उत्कृष्टता के लिए राष्ट्रीय रूपरेखा (एनएफसीई) विकसित करेगी।

उन्होंने कहा, ‘‘यह रूपरेखा गुणवत्ता की कसौटी पर अदालतों के प्रदर्शन के मापे जाने योग्य मानदंड और समयसीमा निर्धारित करेगी।’’ उन्होंने कहा कि एक केस मैनेजमेंट सिस्टम (सीएमएस) भी बनाया जाएगा जो लोगों के लिए न्यायिक प्रक्रियाओं को सहज बनाने में मदद करेगा। (एजेंसी)

First Published: Sunday, April 7, 2013, 13:17

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