Last Updated: Wednesday, July 10, 2013, 21:41

नई दिल्ली : राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक अहम और ऐतिहासिक फैसला दिया। शीर्ष अदालत ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को रद्द कर दिया जिसके तहत दोषी आपराधिक मामलों में जनप्रतिनिधि (सांसद और विधायक) ऊपरी अदालत में अपील लंबित रहने तक अयोग्य करार नहीं दिये जा सकते।
न्यायमूर्ति ए.के. पटनायक और न्यायमूर्ति एस.जे. मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘इसमें सिर्फ जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (4) के अधिकारातीत होने का सवाल है। हम इसे अधिकारातीत घोषित करते हैं और दोषी ठहराए जाने की तारीख से ही अयोग्यता प्रभावी होगी।’ इसके साथ ही न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह फैसला उन सांसदों और विधायकों पर लागू नहीं होगा जिन्होंने इस निर्णय से पहले ही हाईकोर्ट में अपील दायर कर रखी है।
यह निर्णय आम आदमी और जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत संरक्षण प्राप्त निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच भेदभाव करने वाला प्रावधान खत्म करता है। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (3) के तहत ऐसा व्यक्ति जो किसी अपराध में दोषी ठहराया गया है और उसे दो साल से कम की कैद की सजा नहीं हुई है तो वह रिहाई के बाद दो साल तक अयोग्य रहेगा। धारा 8 (4) कहती है कि कानून निर्माता दोषी ठहराए जाने की तिथि से तीन महीने तक और यदि इस दौरान उसने अपील दायर कर दी है तो इसका निबटारा होने तक अयोग्य घोषित नहीं किये जाएंगे।
निर्वाचन आयोग ने समय-समय पर अपनी रिपोर्ट में विभिन्न अपराधों में दोषी ठहराए गए सांसदों और विधायकों को लाभ की स्थिति प्रदान करने वाला यह प्रावधान खत्म करने के लिए कानून में संशोधन की सिफारिश की थी। राजनीतिक दल इस संबंध में जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान में संशोधन का विरोध करते हुए दलील देते हैं कि सत्तारुढ़ दल चुनाव प्रक्रिया से प्रतिद्वन्द्वियों को दूर करने के इरादे से राजनीतिक विद्वेष के कारण झूठे मामले बनाते हैं।
एक गैर सरकारी संगठन एडीआर के अनुसार विभिन्न मामलों में 162 वर्तमान सांसदों पर आपराधिक मुकदमें चल रहे हैं और इनमें से 76 तो ऐसे मामलों में शामिल हैं जिनमें पांच साल या उससे अधिक की सजा हो सकती है। इसी तरह 1460 विधायकों पर आपराधिक मामलों में विभिन्न अदालतों में मुकदमें चल रहे हैं। इनमें से 30 फीसदी मामलों के पांच साल या इससे अधिक की सजा हो सकती है।
इस फैसले पर राजननीतिक दलों ने सधी प्रतिक्रिया दी है। कानून मंत्री कपिल सिब्बल और भाजपा के प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि वे फैसले के अवलोकन के बाद ही प्रतिक्रिया देंगे क्योंकि इसके व्यापक कानूनी निहितार्थ हैं।
कपिल सिब्बल ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि क्या सरकार फैसले पर पुनर्विचार का आग्रह करेगी जबकि प्रसाद ने कहा कि भाजपा राजनीतिक प्रक्रिया को स्वच्छ बनाने की किसी भी पहल का समर्थन करेगी।
कम्युनिस्ट पार्टी के नेता डी. राजा ने कहा कि यह फैसला काफी महत्वपूर्ण है और हमें यह देखने के लिए इंतजार करना होगा कि राजनीतिक दल और निर्वाचन आयोग इस मसले को किस तरह लेता है।
शीर्ष अदालत ने वकील लिली थामस और गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी के सचिव एस.एन. शुक्ला की जनहित याचिका पर यह निर्णय दिया है। इन याचिकाओं में जनप्रतिनिधित्व कानून के चुनिन्दा प्रावधानों को निरस्त करने का अनुरोध करते हुए कहा गया था कि इससे संविधान के उन प्रावधानों का हनन होता है जो अपराधियों के मतदाता बनने या सांसद या विधायक बनने पर स्पष्ट प्रतिबंध लगाता है।
याचिका में कहा गया था कि जनप्रतिनिधित्व कानून के कुछ प्रावधान दोषी ठहराये गये निर्वाचित प्रतिनिधियों को उनकी अपील लंबित होने के दौरान पद पर बने रहने की अनुमति देते हैं। इस तरह से ये प्रावधान पक्षपातपूर्ण और राजनीति के अपराधीकरण को बढ़ावा देने वाले हैं। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, July 10, 2013, 15:17