Last Updated: Friday, October 7, 2011, 12:13
नई दिल्ली : प्रतिबंधित पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) माओवादियों और जम्मू-कश्मीर के आतंकवादी संगठनों के साथ मिलकर भारत सरकार के खिलाफ ‘मजबूत संयुक्त मोर्चा’ बनाना चाहती थी. दिल्ली पुलिस ने मणिपुर के दो उग्रवादियों की गिरफ्तारी के बाद शुक्रवार को यह दावा किया.
पुलिस ने दावा किया कि गिरफ्तारियों से पीएलए और माओवादियों के बीच गठबंधन का भंडाफोड़ करने में सहयोग मिला है. पीएलए हथियारबंद संघर्ष के माध्यम से मणिपुर को स्वतंत्र कराना चाहती है और अपने साझा दुश्मन भारत सरकार के खिलाफ ‘संयुक्त रणनीतिक मोर्चा’ बनाना चाहती है.
पुलिस के दावे में कहा गया है कि पीएलए ने भाकपा (माओवादी) को साजो-सामान, प्रशिक्षण, हथियार और संचार प्रणाली मुहैया कराया था और वर्ष 2009 एवं 2010 में उनके कैडरों को दो बार झारखंड और उड़ीसा में प्रशिक्षण दिया. इसके अलावा अगले वर्ष माओवादियों के लिये दो और प्रशिक्षण शिविर स्थापित करने की योजना थी.
विशेष प्रकोष्ठ के विशेष आयुक्त पी.एन. अग्रवाल ने संवाददाताओं से कहा, ‘दिल्ली के पहाड़गंज इलाके से एक अक्तूबर को एन. दिलीप सिंह (51) और अरुण सिंह सालम (36) को गिरफ्तार किया गया. उनकी गिरफ्तारी के बाद मणिपुर पुलिस ने इंफाल में तीन और लोगों को गिरफ्तार किया.’
स्वयंभू कप्तान सिंह पीएलए के विदेशी मामलों का प्रमुख है जबकि सालम उपप्रमुख है. वे अपने शीषर्स्थ नेताओं के निर्देश पर दिल्ली आये थे ताकि माओवादियों को साजो-सामान मुहैया कराने, प्रशिक्षण, हथियारों और संचार प्रशिक्षण के तौर-तरीकों पर चर्चा की जा सके.
अग्रवाल ने दावा किया कि उनसे जब्त लैपटॉप और दस्तावेजों तथा उनसे की गई पूछताछ से पता चलता है कि पीएलए और माओवादी संयुक्त रणनीतिक मोर्चा बनाने पर सहमत हो गये थे ताकि भारत सरकार को उखाड़ फेंकने में वे एक-दूसरे का समर्थन कर सकें. अग्रवाल ने कश्मीर के उन आतंकवादी संगठनों के नाम का जिक्र नहीं किया जिन्हें पीएलए अपने खेमे में लेना चाहती थी. उन्होंने कहा कि समझा जाता है कि पीएलए के संबंध पाकिस्तान की आईएसआई से भी हैं.
उन्होंने कहा कि पीएलए और भाकपा (माओवादी) के संयुक्त प्रशिक्षण शिविर म्यामां में स्थापित करने के तौर-तरीकों पर बात के लिये दोनों दिल्ली आये थे. सिंह का कोड नाम 'एन.वांगबा' है जबकि सालम का कोड नाम 'विलो' है. उन्होंने कहा, वे फर्जी पहचान पत्र का उपयोग कर दिल्ली के होटल में रूके हुए थे. सिंह पूर्वोत्तर का है जबकि सालम पुणे का है जहां वह ट्रेवल एजेंसी चलाता है. सालम को वहां एक विशेष कार्य से भेजा गया था. गिरफ्तारियों के बाद पुणे पुलिस ने सालम के आवास पर छापेमारी की जहां से उसका लैपटॉप और किताबें बरामद हुईं.
सालम के आवास से जब्त किताबों और दस्तावेजों में माओवादी विचारधारा के दस्तावेज, खुफिया इकाईयों और सुरक्षा बलों, गुरिल्ला युद्ध, छापामार युद्ध, नेपाली माओवादी आंदोलन और इसके प्रभाव, युद्ध मनोविज्ञान, उग्रवादी विरोधी और पीएलए की कार्यवाहियों से संबंधित बातें कोड में है. अग्रवाल ने कहा, ‘वर्ष 2010 में सिंह ने माओवादी नेता किशन दा से मुलाकात की थी जो झारखंड में भाकपा माओवादी एवं अन्य संगठनों का पोलित ब्यूरो सदस्य हैं. अक्तूबर 2008 में पीएलए और माओवादियों ने भारत सरकार के खिलाफ संयुक्त घोषणा पर दस्तखत किए थे. इस पर आरपीएफ के महासचिव एस. गुनीन और माओवादी नेता ‘आलोक’ ने दस्तखत किए थे.’
अग्रवाल के मुताबिक सिंह पीएलए के हथियारबंद दस्ते में 1988 में सिपाही के तौर पर शामिल हुआ था और वर्ष 2009 में वह कप्तान के रैंक पर पदोन्नत हुआ जबकि सिंह 1997 में सिपाही के तौर पर संगठन में शामिल हुआ और जून 2011 में लेफ्टिनेंट के पद पर पहुंचा.
उन्होंने कहा कि पीएलए की राजनीतिक शाखा रिवॉल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट म्यामां से निर्वासित सरकार चलाती है. पीएलए को अनुशासित सेना की तरह पुनगर्ठित किया गया. पीएलए में अब चार डिवीजन हैं और हर डिवीजन में एक कॉमरेड, लेफ्टिनेंट, सार्जेंट, लांस कॉरपोरल्स एवं सिपाही हैं. कैडर की संख्या 1500 है और उनके पास आधुनिक हथियार हैं. पीएलए की स्थापना 1978 में हुई थी जिसमें नागा, कुकी और मैतेई जैसे संगठन शामिल थे और इसका उद्देश्य मणिपुर को स्वतंत्र कराना था.
(प्रेट्र.)
First Published: Monday, October 10, 2011, 12:42