Last Updated: Tuesday, October 16, 2012, 23:12

नई दिल्ली : मंत्रियों के एक समूह ने परियोजनाओं के लिए भूमि जुटाने के नए कानून के प्रस्तावों पर तीव्र मतभेदों को पीछे छोड़ कर भूमि अधिग्रहण विधेयक के मसौदे को मंगलवार को मंजूरी दे दी। उम्मीद है कि अब यह विधेयक संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश कर दिया जाएगा।
सूत्रों ने कहा कि इस इस विधेयक में प्रावधान है कि सरकारी-निजी भागीदारी (पीपीपी) और निजी परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण हेतु ऐसे दो तिहाई भूस्वामियों की मंजूरी होनी चाहिए जिनकी जमीन परियोजना को जा सकती है।
सूत्रों ने कहा कि इस विधेयक को विगत तिथि से लागू करने का कोई प्रावधान नहीं है। इसमें पुराने कानून के प्रभावी होने की एक अंतिम तिथि जरूरी होगी जिसे बाद में तय किया जाएगा।
इस समूह में शामिल मंत्रियों के बीच इसके कई प्रावधानों पर गंभीर मतभेद थे जिसमें विगत तिथि से लागू करने तथा रोजी-रोटी और जमीन गंवाने वाले 80 प्रतिशत लोगों की सहमति जैसे प्रस्ताव शामिल था।
भूमि अधिग्रहण में समुचित क्षतिपूर्ति, पुनर्वास एवं पुनरोद्धार तथा पारदर्शिता विधेयक के मसौदे का निर्णय के लिए यहां घंटे भर चली बैठक के बाद समूह के अध्यक्ष और कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा, विधेयक का मसौदा तय कर लिया गया है। हमने मसौदे को अंतिम रूप दे दिया है।
पवार ने संवाददाताओं से कहा कि समूह में जिन मुद्दों पर मतभेद थे उन पर ‘एक सहमति कायम करने में कामयाबी मिल गई है।
उन्होंने कहा कि मुआवजे के विषय में मंत्रालयों के मदभेद का भी समाधान निकाल लिया गया है। अब इस बैठक के विवरण को सदस्यों के बीच वितरित किया जाएगा। उस पर कोई सुझाव आता है तो उस सुझाव के साथ इस मसौदे को मंत्रिमंडल के विचारार्थ प्रस्तुत कर दिया जाएगा। कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा, हमने एक महत्वपूर्ण विधेयक पर सहमति का दृष्टिकोण निकाल लिया।
मंत्रिसमूह का गठन होता भी इसीलिए है। उन्होंने कहा कि बहुत संभव है कि यह विधेयक शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत कर दिया जाए।
इस समूह में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा, सड़क परिवहन मंत्री सीपी जोशी और शहरी विकास मंत्री कमलनाथ शामिल थे।
समूह के सदस्य एवं रक्षा मंत्री एके एंटनी ने पिछली बैठक में कहा था कि सरकार को जमीन अधिग्रहण में मदद करने के लिए नहीं आना चहिए।
1894 के पुराने कानून की जगह नए भूमि अधिग्रहण कानून का प्रस्ताव विधेयक काफी लम्बे समय से अटका है। इस बाबत एक विधेयक गत वर्ष सितंबर में संसद में पेश किया गया। उसे संसदीय समिति को भेज दिया गया। समिति ने गत मई में अपनी रपट दे दी। संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार समिति ने भी इस विधेयक के बारे में सरकार को सुझाव दिए थे। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, October 16, 2012, 18:14