राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी पर चढ़ाना असंवैधानिक होगा : पूर्व न्यायाधीश

राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी पर चढ़ाना असंवैधानिक होगा : पूर्व न्यायाधीश

राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी पर चढ़ाना असंवैधानिक होगा : पूर्व न्यायाधीशतिरुवनंतपुरम : उच्चतम न्यायालय की एक पीठ के प्रमुख के रूप में राजीव गांधी हत्याकांड के तीन अभियुक्तों के मृत्युदंड पर मुहर लगाने के 13 साल बाद पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति केटी थॉमस ने आज कहा कि उन्हें फांसी पर चढ़ाना संवैधानिक रूप से गलत होगा क्योंकि अपने मामले की समीक्षा के बगैर वे 22 साल जेल में गुजार चुके हैं।

तीन न्यायाधीशों की पीठ की अगुवाई कर चुके न्यायमूर्ति थॉमस ने कहा, ‘राजीव गांधी हत्याकांड में जिन आरोपियों को मौत की सजा सुनाई गई, हमने उनके स्वभाव और चरित्र पर गौर नहीं किया। अतएव मृत्युदंड संविधान के अनुच्छेद 22 के खिलाफ है।’ उन्होंने कहा, ‘इतनी देरी से उन्हें फांसी पर चढ़ाना असंवैधानिक होगा।’ न्यायमूर्ति थॉमस ने कहा कि वर्ष 2010 में न्यायमूर्ति एस बी सिन्हा की अगुवाई वाली शीर्ष अदालत की एक पीठ ने कहा था कि मृत्युदंड सुनाते समय अपराध के व्यक्तिगत चरित्र को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि इसके अलावा राजीव गांधी हत्याकांड के तीनों अभियुक्त-मुरूगन, संतन और पेराविलान दो दशक से भी अधिक समय से जेल में हैं। न्यायमूर्ति (सेवानिवृत) थॉमस ने कहा कि उम्रकैद पाए हर कैदी को अपने मामले की समीक्षा किए जाने हक है, चाहे माफी मिले या नहीं। उन्होंने कहा कि राजीव हत्याकांड के तीनों अभियुक्त अपने मामले की समीक्षा का अवसर पाए बगैर लंबे समय से जेल में हैं।

उल्लेखनीय है कि श्रीपेरूम्बदूर में 21 मई, 1991 को एक महिला आत्मघाती बम हमलावर के हमले में राजीव गांधी मारे गए थे। एक विशेष अदालत ने 1998 में 26 लोगों को मृत्युदंड सुनाया था लेकिन जब यह मामला उच्चतम न्यायालय पहुंचा तब शीर्ष अदालत ने केवल चार -नलिनी, मुरूगन, संतन और पेराविलान की मौत की सजा पर मुहर लगाई।

तमिलनाडु मंत्रिमंडल की सिफारिश और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की सार्वजनिक अपील के बाद नलिनी के मृत्युदंड को वर्ष 2000 में तमिलनाडु के राज्यपाल ने उम्रकैद में बदल दिया था। तीन अन्य अभियुक्तों को नौ सितंबर, 2011 को फांसी पर चढ़ाया जाना था, लेकिन मद्रास उच्च न्यायालय ने उस साल अगस्त में ही छह सप्ताह के लिए रोक लगा दी। बाद में यह मामला शीर्ष अदालत पहुंच गया। उससे पहले तीनों की क्षमा याचिका वर्ष 2011 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने खारिज कर दी थी। उसे अभियुक्तों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। (एजेंसी)

First Published: Sunday, February 24, 2013, 19:06

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