Last Updated: Friday, July 12, 2013, 15:54

नई दिल्ली : कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने शुक्रवार को संकेत दिया कि आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं करेगी। साथ ही उन्होंने इन दावों को खारिज किया कि भाजपा की ओर से इस पद के लिए नरेंद्र मोदी को पेश किया जाना कांग्रेस के लिए चुनौती है।
हालांकि उन्होंने यह भी नहीं कहा कि अगर पार्टी अगले साल होने वाले आम चुनाव में भी जीतती है, तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक बार फिर इस सर्वोच्च पद के उम्मीदवार होंगे। सिंह ने एक साक्षात्कार में कहा कि हमारे यहां राष्ट्रपति शासन की प्रणाली नहीं है। कांग्रेस पार्टी चुनाव से पहले न तो मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करती है और न ही प्रधानमंत्री का।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी हमने मुख्यमंत्री पद का कोई उम्मीदवार घोषित नहीं किया था। उसने पूछा गया था कि कांग्रेस राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करने को लेकर संकोच में क्यों है और उसकी ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा।
सिंह ने इस बात के भी संकेत दिए कि कांग्रेस को आगामी आम चुनाव के बाद वाम दलों का साथ रिश्ता जोड़ने से कोई गुरेज नहीं है और कहा कि मोदी के आगमन से मतों का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण होगा। जब उनसे प्रधानमंत्री पद के लिए भाजपा का उम्मीदवार घोषित किए जाने से महज एक कदम दूर पार्टी के प्रचार अभियान के प्रमुख नरेंद्र मोदी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हमें इससे फर्क नहीं पड़ता। यह मामला हमारा नहीं है। भाजपा अपने फैसले लेने को स्वतंत्र है। हम विचारधारा की राजनीति करते हैं, व्यक्तित्व की नहीं। कांग्रेस पार्टी ध्रुवीकरण की राजनीति में यकीन नहीं करती।
जयराम रमेश की उस टिप्पणी, जिसमें उन्होंने नरेंद्र मोदी को पार्टी के लिए प्रबंधकीय और वैचारिक चुनौती करार दिया था, के बारे में जब पूछा गया कि क्या कांग्रेस मोदी को एक राजनीतिक चुनौती के तौर पर देखती है, तो सिंह ने कहा कि नरेंद्र मोदी और उससे पहले लालकृष्ण आडवाणी जैसे नाम धुव्रीकरण का आभास कराते हैं।
उन्होंने कहा कि यह मोदी नहीं हैं। यह संघ और भाजपा की वह विचारधारा है, जो विभाजन की राजनीति में यकीन करती है। धर्म के नाम पर नफरत और हिंसा फैलाने की राजनीति हमारे लिए चुनौती है। मनमोहन सिंह को कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद का फिर से उम्मीदवार बनाए जाने के सवाल को दिग्विजय सिंह ने टालते हुए कहा कि सबसे पहले तो देश को हमें फिर से जनादेश देना होगा और फिर उसके बाद सभी निर्वाचित सांसदों से राय मशविरा करके संसदीय दल और पार्टी अध्यक्ष फैसले करेंगे।
जब उनसे पूछा गया कि संप्रग-1 सरकार को बाहर से समर्थन दे चुका वाम मोर्चा क्या कांग्रेस का स्वाभाविक सहयोगी है, तो सिंह ने कहा कि संप्रग-1 के शुरुआती चार वर्षों में वाम दलों के साथ काम करना एक अच्छा अनुभव रहा, लेकिन दुर्भाग्यवश परमाणु विधेयक के मुद्दे पर उन्होंने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। उन्होंने कहा कि मेरी अपनी धारणा है कि वाम दलों के मामले में हम जानते हैं कि हमें किन मापदंडों के भीतर काम करना है और इस वजह से उनके साथ मिलकर काम करना ज्यादा आसान हैं।
बिहार में राजग गठबंधन से बाहर हुई जद (यू) के संप्रग के साथ जुड़ने की संभावना पर दिग्विजय सिंह ने कहा कि इस मामले में कांग्रेस आला कमान ही फैसला करेगी। उन्होंने कहा कि गोधरा में हुई दुर्घटना के समय नीतीश रेल मंत्री थे और उन्होंेने इस्तीफा नहीं दिया था, जबकि राम विलास पासवान ने तब इस्फीफा दे दिया था। अब उन्होंने (नीतीश) सकारात्मक कदम उठाया है, जो वाकई बड़ा साहसिक कदम है। हम उसकी प्रशंसा करते हैं। मेरा मानना है कि अगर उन्होंने बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव में यह साहस दिखाया होता, तो भाजपा इतनी अधिक सीटें नहीं ला पाती। भाजपा का वहां वैसा ही हाल होता, जैसा ओडिशा में हुआ था, जब नवीन पटनायक ने उनसे गठबंधन खत्म कर लिया था।
जब उनसे पूछा गया कि क्या बिहार में राजद स्वाभाविक सहयोगी है, सिंह ने कहा कि यह तय करना एंटनी समिति का काम है। उन्होंने कहा कि तथ्य यह है कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद वर्ष 2004 से पहले से कांग्रेस अध्यक्ष और कांग्रेस का समर्थन करते रहे हैं। वर्ष 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के मुद्दे से जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा कि हमारा प्रचार अभियान बीते दस वषो’ में किए गए हमारे कार्य और आने वाले पांच वर्षों में किए जाने वाले कार्यों पर आधारित होगा। सिंह ने कहा कि दुनिया जब सबसे बुरे आर्थिक संकट से जूझ रही है, ऐसे समय में भी संप्रग-2 सरकार देश के सतत विकास में कामयाब रही है। (एजेंसी)
First Published: Friday, July 12, 2013, 14:28