Last Updated: Friday, December 9, 2011, 11:33
नई दिल्ली : लोकपाल पर संसदीय समिति की राज्य सभा में पेश हुई रिपोर्ट पर भाजपा ने कहा कि इसमें संसद के पिछले सत्र में जताई गई ‘सदन की भावना’ का सम्मान नहीं किया गया है और रिपोर्ट की उलझाने वाली भाषा से लगता है कि सरकार की नीयत लोकपाल विधेयक को इस सत्र में पेश करने की नहीं है।
राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने आरोप लगाया कि संसद में पेश इस रिपोर्ट में इतनी कानूनी पेचीदगी और उलझाऊ भाषा का इस्तेमाल किया गया है जिससे लगता है कि सरकार की नीयत इस सत्र में लोकपाल विधेयक को लाने की नहीं है। उन्होंने यह भी कहा, ‘सरकार की नैतिक साख गिर रही थी और यह रिपोर्ट उसे सुधारने में मदद नहीं करती।’
जेटली ने संसद परिसर में संवाददाताओं से कहा कि जब पिछले सत्र के दौरान अन्ना हजारे के अनशन को तोड़ने के लिए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने दोनों सदनों में सदन की भावना (सेंस ऑफ हाउस) संबंधी वक्तव्य दिया था तो उसमें निचली नौकरशाही और सिटीजन चार्टर (नागरिक अधिकार पत्र) को लोकपाल के दायरे में लाने की भावना जताई गई थी लेकिन समिति की आज पेश हुई रिपोर्ट में दोनों को ही लोकपाल के अधीन नहीं रखने की सिफारिश की गई है।
उन्होंने कहा, ‘सेंस ऑफ हाउस सदन की प्रतिबद्धता है जिसे तोड़ा नहीं जा सकता। रिपोर्ट में उनका पालन होना चाहिए था।’ जेटली ने स्पष्ट किया कि समिति में शामिल भाजपा के सात सदस्यों ने इन विषयों के अलावा जिन मुद्दों पर अपने असहमति नोट दिए हैं, पार्टी उन पर अडिग है। भाजपा नेता ने कहा कि प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने को तीन विकल्पों के साथ निर्णय संसद पर छोड़ा जाना ईमानदार सुझाव नहीं है।
उन्होंने कहा कि समिति के 30 सदस्यों में से 17 सदस्यों ने अलग-अलग असहमति नोट दिए हैं जबकि किसी स्थायी समिति से अपेक्षा की जाती है कि उसके अधिकतर निर्णय सर्वसहमति से हों। उन्होंने कहा कि जो व्यवस्था सुझाई गई है वह संसदीय लोकतंत्र के अनुरूप नहीं है और संसद का काम समिति के सुझाए विकल्पों में से एक चुनना नहीं है।
जेटली ने कहा कि भाजपा राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के कुछ विषयों को छोड़कर प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने के पक्ष में है। उन्होंने कहा कि जब प्रधानमंत्री को भारतीय दंड संहिता से छूट प्राप्त नहीं है तो इस प्रमुख पद को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने की बात क्यों की जा रही है।
जेटली ने यह भी कहा कि रिपोर्ट में लाखों एनजीओ, मीडिया संस्थानों और प्राइवेट कंपनियों को लोकपाल की जांच के दायरे में लाने का सुझाव उस स्थिति में तार्किक नहीं लगता जब समूह सी और डी के कर्मचारियों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है।
(एजेंसी)
First Published: Friday, December 9, 2011, 17:04