Last Updated: Friday, April 6, 2012, 12:28
शिमला : हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने संशोधित स्वरूप में शुक्रवार को लोकायुक्त विधेयक 2012 पारित कर दिया। इसमें अतिरिक्त धाराओं को जोड़ा गया है, जो लोकायुक्त को उच्च न्यायालय के समान अवमानना की शक्तियां प्रदान करता है। विधेयक बिना किसी बाधा के पारित हो गया क्योंकि प्रश्नकाल के दौरान बहिर्गमन करने वाले समूचे विपक्षी कांग्रेस सदस्यों ने बहस में हिस्सा नहीं लिया।
चर्चा का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कहा कि हिमाचल लोकायुक्त विधेयक उत्तराखंड लोकायुक्त विधेयक की तुलना में अधिक ‘मजबूत और संवैधानिक’ है। हिमाचल और उत्तराखंड के लोकायुक्त विधेयकों की तुलना करते हुए धूमल ने कहा कि उत्तराखंड का विधेयक कमजोर है क्योंकि कुछ कानूनी अड़चनों की वजह से राष्ट्रपति ने उसे अब तक मंजूरी नहीं दी है, लेकिन हमारा विधेयक पूरी तरह संवैधानिक, व्यापक और मजबूत है। उत्तराखंड के विधेयक के दायरे में सिर्फ राज्य में पदस्थापित अधिकारी ही आते हैं जबकि हिमाचल के विधेयक के दायरे में सभी अधिकारी आते हैं। भाजपा के खुशी राम बलनाथ (भाजपा) के सुझावों का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इसपर विचार किया जा सकता है और इसे बाद में अधिसूचित किया जा सकता है। बलनाथ ने सोसाइटियों और अन्य पंजीकृत निकायों को विधेयक के दायरे में लाने को कहा था।
लोकसेवकों में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने वाले विधेयक के दायरे में मुख्यमंत्री से लेकर पंचायत के सदस्यों तक सभी अधिकारी शामिल होंगे। पंचायती राज संस्थाओं और स्थानीय शहरी निकायों के निर्वाचित सदस्यों के खिलाफ भी शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। लोकायुक्त के पद पर उच्चतम न्यायालय के किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के किसी सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश को नियुक्त किया जाएगा और उनके साथ ही दो उप लोकायुक्त होंगे। विधेयक लोकायुक्त अधिनियम, 1983 की जगह लेगा जिसे कारगर नहीं पाया गया है।
(एजेंसी)
First Published: Friday, April 6, 2012, 17:58