Last Updated: Sunday, April 28, 2013, 18:57

नई दिल्ली : टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष पी सी चाको ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी चिदंबरम को मसौदा रिपोर्ट में क्लीन चिट दिए जाने को उचित ठहराते हुए कहा कि ऐसी कोई भी फाइल या रिकॉर्ड नहीं है जिससे पता चले कि प्रधानमंत्री या वित्त मंत्री ने कुछ भी गलत किया था।
चाको ने यह भी कहा कि सिंह और चिदंबरम को भाजपा की पूरजोर मांग के बावजूद समिति के समक्ष इसलिए नहीं बुलाया गया क्योंकि जेपीसी के 30 सदस्यों में से अधिकतर की राय इस कदम के पक्ष में नहीं थी। वर्ष 2008 में विवादास्पद टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए जिम्मेदार ठहराए गए पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा को न बुलाने के लिए हो रही आलोचना के जवाब में चाको ने कहा कि उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया था।
चाको ने कहा ‘हमें एक भी ऐसी कोई फाइल या रिकॉर्ड देखने को नहीं मिला जिससे लगता कि प्रधानमंत्री या वित्त मंत्री ने कुछ भी गलत किया था या फैसले के लिए वह जिम्मेदार हैं।’ उनसे संवाददाताओं ने टू जी मामले में मसौदा रिपोर्ट में प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को क्लीन चिट दिए जाने के बारे में विपक्ष द्वारा की जा रही आलोचनाओं के बारे में प्रतिक्रिया मांगी थी क्योंकि राजा कह चुके हैं कि टू जी आवंटन से जुड़े सभी फैसले करने में उन्हें सिंह और चिंदंबरम की मंजूरी थी।
समिति के विपक्षी सदस्यों का आरोप है कि चाको ने ‘पक्षपात’ किया और रिपोर्ट इस तरह तैयार की जिससे सिंह और चिदंबरम का बचाव हो सके। चाको ने कहा, ‘गवाहों ने अपनी गवाही में कई बातें कही, जिन्हें हमने फाइलों से मिलाया। इस तरह हम निष्कर्ष पर पहुंचे। मुझे नहीं लगता कि हमने कुछ गलत किया है।’ जेपीसी की मसौदा रिपोर्ट में राजपा पर प्रधानमंत्री को गुमराह करने का आरोप है। राजा ने समिति को बताया कि उन्होंने स्पेक्ट्रम की नीलामी, प्रवेश शुल्क से लेकर हर बड़ा फैसला प्रधानमंत्री सिंह, चिदंबरम और तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी के साथ विचारविमर्श के बाद किया था।
सिंह, चिदंबरम और राजा को न बुलाने को लेकर उठे विवाद के संदर्भ में चाको ने इस बात पर सहमति जताई कि समिति का एक वर्ग हमेशा से इन लोगों को बुलाने की मांग करता रहा। उन्होंने कहा ‘यह सही है कि यशवंत सिन्हा, रविशंकर प्रसाद (दोनों भाजपा सदस्य) और गुरदास दासगुप्ता (भाकपा) ने बार बार कहा, लिखित में दिया और पत्र भी भेजे। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उनकी राय ज्यादातर लोगों की राय थी।’ चाको ने कहा कि समिति के करीब आधा दर्जन सदस्य उन्हें गवाह के तौर पर बुलाने के लिए जोर दे रहे थे। उन्होंने कहा कि जेपीसी में 30 सदस्य थे और उनमें से भी ऐसा कहने वालों की संख्या सिर्फ पांच या छह थी। मैंने कभी भी निजी फैसला नहीं किया। हर फैसला समिति के ज्यादातर सदस्यों की राय पर आधारित था।
राजा के बारे में जेपीसी अध्यक्ष ने कहा कि वह समिति के समक्ष पेश हुए। ‘अगर कोई यह कहता है कि राजा के विचार समिति के समक्ष नहीं आए तो यह पूरी तरह गलत है।’ उन्होंने कहा ‘मैंने खुद राजा से बात की और उन्हे समझाया कि वह लिखित में अपने विचार भेज दें। संसदीय समिति के समक्ष दो तरह से उपस्थिति दर्ज कराई जा सकती है। या तो खुद पेश हो कर या लिखित रूप में अपने विचार पेश कर। दोनों ही तरीके एक समान माने जाते हैं। हमने उनके विचारों पर भी गौर किया। राजा की मांग को पूरा किया गया।
चाको इस तर्क से सहमत नहीं हुए कि राजा को निजी तौर पर एक बार पेश होने का मौका दिया जाना चाहिए था क्योंकि वह मुख्य आरोपी हैं। उन्होंने कहा कि राजा अदालत में चल रहे मामले में मुख्य आरोपी हैं लेकिन जेपीसी में नहीं क्योंकि इसकी शर्तें’ वर्ष 1998 और 2009 के बीच की दूरसंचार नीति, उसके कार्यान्वयन और त्रुटियों तक ही सीमित थी। (एजेंसी)
First Published: Sunday, April 28, 2013, 12:11