IT कानून पर SC में सुनवाई आज, पक्ष रखेंगे अटार्नी जनरल

IT कानून पर SC में सुनवाई आज, पक्ष रखेंगे अटार्नी जनरल

IT कानून पर SC में सुनवाई आज, पक्ष रखेंगे अटार्नी जनरलज़ी न्‍यूज ब्‍यूरो/एजेंसी

नई दिल्‍ली : फेसबुक पर कथित आपत्तिजनक संदेश लिखने के आरोप में हाल ही में कई व्यक्तियों की गिरफ्तारी से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी कानून में संशोधन के लिए दायर याचिका के निबटारे के लिए अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती की मदद मांगी है। सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को महान्यायवादी जी.ई. वाहनवती को शुक्रवार को एक जनहित याचिका पर सरकार का पक्ष रखने के लिए कहा है। याचिका में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कानून 2000 से इसकी धारा 66ए को हटाने की मांग की गई है। इस याचिका पर शुक्रवार को आगे की सुनवाई होगी।

बीते दिनों मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर और न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर की पीठ से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि आईटी कानून की धारा 66ए संविधान के अनुच्छेद 4,19(1)(ए) और अनुच्छेद 21 के विरुद्ध है। इस पर पीठ ने वाहनवती को अदालत में उपस्थित होने का निर्देश दिया। इस धारा में वेबसाइटों या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों पर अप्रिय टिप्पणी लिखने वालों पर कार्रवाई किए जाने का प्रावधान है।

अदालत ने कहा कि जिस प्रकार का घटनाक्रम सामने आया, उससे इस पर विचार किए जाने की जरूरत है, ताकि भविष्य में यह दोबारा नहीं हो। अप्रैल में जाधवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अम्बिकेश महापात्रा को कोलकाता में गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कार्टून प्रसारित करने का आरोप था। उधर, बाल ठाकरे के निधन के बाद मुम्बई बंद पर सवाल उठाने वाली टिप्पणी फेसबुक पर डालने पर महाराष्ट्र में एक युवती शहीन ढाडा और उनके एक मित्र को गिरफ्तार कर लिया गया।

प्रधान न्यायाधीश अलतमस कबीर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने दिल्ली की छात्रा श्रेया सिंघल की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान गुरुवार को अटार्नी जनरल से कहा कि वह इस प्रकरण के निबटारे में न्यायालय की मदद करें। लेकिन न्यायाधीशों ने याचिका पर सुनवाई के दौरान फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर इस प्रकार के संदेश लिखने वालों के खिलाफ दमनात्मक कार्रवाई नहीं करने का सरकार को निर्देश देने से इनकार कर दिया। इस याचिका पर अब शुक्रवार को आगे सुनवाई होगी।

इससे पहले, सुबह प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने दिल्ली की छात्रा श्रेया सिंघवल की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त करते हुए कहा था कि हाल की घटनाओं के संदर्भ में वह स्वत: ही इस मामले का संज्ञान लेने पर विचार कर रही थी। न्यायाधीशों ने इस बात पर अचरज व्यक्त किया था कि अभी तक सूचना प्रौद्योगिकी कानून के इस प्रावधान को किसी ने चुनौती क्यों नहीं दी। श्रेया ने दलील दी है कि कानून की धारा 66ए की शब्द रचना बहुत व्यापक और अस्पष्ट है और यह उद्देश्य का मानक निर्धारण करने में अक्षम है। याचिका में कहा गया है कि इस वजह से चूंकि इसका दुरुपयोग हो सकता है और इसीलिए यह संविधान के अनुच्छेद के अनुरुप नहीं है। श्रेया ने याचिका में कहा है कि बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के संबंध में आपराधिक कानून पर अमल से पहले इसके लिए न्यायिक मंजूरी की अनिवार्यता के बगैर अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने के लिए इसका दुरुपयोग हो सकता है।

First Published: Friday, November 30, 2012, 09:23

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