Last Updated: Sunday, October 21, 2012, 14:25
इंदौर : देश में विजयादशमी के पर्व को बेशक असत्य पर सत्य की जीत कहकर पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता हो और इस अवसर पर बुराई के प्रतीक रावण के हजारों की संख्या में पुतले दहन किये जाते हों लेकिन इस बहुचर्चित पौराणिक चरित्र को यहां कुछ लोग लगभग 40 सालों से पूज रहे हैं।
हिंदुओं की प्रचलित धार्मिक मान्यताओं से एकदम अलग शिवभक्त रावण की पूजा की यह परंपरा दशहरे पर 24 अक्तूबर को भी जारी रहेगी, जबकि दूसरी ओर त्यौहारी उल्लास के बीच हजारों की संख्या में पूरे देश में रावण के पुतले धू-धू करके जल रहे होंगे।
‘‘जय लंकेश मित्र मंडल’’ के अध्यक्ष महेश गौहर ने आज बताया, ‘हम इस बार भी दशहरे पर गाजे-बाजे के साथ रावण की पूजा-अर्चना करेंगे। इस मौके पर दशानन की आरती होगी, कन्याओं का पूजन किया जायेगा और प्रसाद भी बांटा जायेगा।’ इसमें काफी संख्या में लोग हिस्सा लेंगे। गौहर ने बताया कि उनकी अगुवाई वाला संगठन 10 सिरों वाले पौराणिक चरित्र को विजयादशमी पर करीब चार दशकों से पूज रहा है और अपने आराध्य रावण की आम छवि बदलने की कोशिशों में भी जुटा है।
वह कहते हैं, ‘रावण भगवान शिव के परम भक्त और प्रकांड विद्वान थे। हम चाहते हैं कि दशहरे पर जगह-जगह रावण का दहन नहीं, बल्कि पूजन हो।’ उन्होंने बताया कि शहर में रावण के मंदिर के निर्माण का काम लगभग पूरा हो चुका है। सबकुछ योजना के मुताबिक रहा तो अगले दो महीने के भीतर इस मंदिर में रावण की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा हो जायेगी, ताकि विधि-विधान से उनके आराध्य की हर रोज पूजा-अर्चना हो सके।
गौहर बताते हैं कि उन्होंने सरकारी या गैर सरकारी संगठनों अथवा किसी आम व्यक्ति से रावण का मंदिर बनवाने के लिये दान में जमीन मांगी थी। लेकिन रावण की आम छवि के चलते कोई भी उन्हें जमीन देने का तैयार नहीं। सही भी है कि इस देश में रावण का मंदिर बनवाने के लिये कौन जमीन देगा। इस कोशिश में नाकामी पर उन्होंने आखिरकार अपनी पुश्तैनी जमीन पर यह मंदिर बनवाने का काम शुरू करा दिया है। गौहर ने बताया कि उन्होंने रावण के मंदिर के पास उनकी मां ‘कैकेसी’ का भी छोटा सा मंदिर बनवाया है। कैकेसी को दशानन के स्थानीय भक्त ‘दशा माता’ के नाम से पुकारते हैं।
करीब 66 वर्षीय गौहर पर रावण की भक्ति का रंग कुछ इस कदर चढ़ा है कि उन्होंने करीब चार साल पहले दशहरे पर अपने पोते का नाम ‘लंकेश्वर’ और पोती का नाम ‘चंद्रनखा’ रखने का फैसला किया। इस मौके पर एक पुरोहित की मदद से बाकायदा नामकरण संस्कार भी किया गया। रावण भक्तों के संगठन के अध्यक्ष की मानें तो दशानन की बहन का असली नाम ‘चंद्रनखा’ ही था। श्रीलक्ष्मण ने जब उसकी नाक काटी तो उसे ‘शूर्पणखा’ के नाम से जाना गया।
उन्होंने बताया, ‘हम परिसंवाद जैसे कार्यक्रमों के जरिये रावण के व्यक्तित्व के छिपे पहलुओं को सामने लाकर उनकी आम छवि बदलने की कोशिश करते हैं। इसके साथ ही, जनता से अनुरोध करते हैं कि दशहरे पर रावण के पुतले फूंकने का सिलसिला बंद हो।’ बहरहाल, गौहर बताते हैं कि मध्यप्रदेश में उन जैसे रावण भक्तों की कमी नहीं है। प्रदेश के विदिशा, मंदसौर, पिपलदा (उज्जैन), महेश्वर और अमरवाड़ा (छिंदवाड़ा) में अलग-अलग रूपों में रावण की पूजा होती है।
First Published: Sunday, October 21, 2012, 14:25