Last Updated: Thursday, July 11, 2013, 00:02

पुरी (ओडिशा) : दस लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने बुधवार को यहां धार्मिक हर्षोल्लास के बीच भगवान जगन्नाथ की विश्वप्रसिद्ध वार्षिक रथयात्रा देखी जिसके लिए बोधगया के सिलसिलेवार विस्फोटों की पृष्ठभूमि में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। बड़ी संख्या में देश विदेश के हजारों श्रद्धालु यहां श्री जगन्नाथ के 12 वीं सदी के मंदिर में विराजमान देवताओं के दर्शन करने के लिए ओडिशा के इस तीर्थस्थल पर एकत्रित हुए थे।
पुलिस महानिदेशक प्रकाश मिश्रा ने कहा, ‘यह उत्सव शांतिपूर्वक संपन्न हो गया। कोई अप्रिय घटना नहीं हुई।’ अधिकारियों ने कहा कि सेवायत, भ्रामर भोई का पैर भगवान जगन्नाथ के रथ के नीचे आ गया और वह गंभीर रूप से घायल हो गया। बिहार के बोध गया में हाल ही में हुए श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के मद्देनजर ऐहतियात के तौर पर यहां सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। सात हजार से अधिक पुलिसकर्मी यहां तैनात किए गए थे।
आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) और त्वरित प्रतिक्रिया बल (आरएएफ) के कर्मचारी और निशानेबाज (शार्प शूटर्स) महत्वपूर्ण स्थलों पर तैनात थे और तटीय भाग में तटरक्षक मुस्तैद थे। श्रद्धालु बड़ी संख्या में सुबह से ही रथ यात्रा देखने के लिए और मुख्य आयोजन स्थल ‘बड़ा डंडा’ में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई भगवान बलभद्र और उनकी बहन देवी सुभद्रा के रंगबिरंगे तीन रथ खींचने के लिए एकत्र हो गए थे। ओडिशा के राज्यपाल एस सी जमीर और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक समेत कई विशिष्ट व्यक्तियों ने यह आयोजन देखा। बड़ा डंडा में किसी भी अवांछित घटना को टालने के लिए बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मी तैनात थे।
मंदिर के गर्भ गृह में परंपरागत ‘मंगल आरती’ और ‘मयलम’ विधि संपन्न कर रत्न सिंहासन पर विराजमान भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई भगवान बलभद्र और उनकी बहन देवी सुभद्रा की प्रतिमाओं को बाहर निकाला गया। तीनों प्रतिमाओं को मंदिर से बाहर लाकर सिंह द्वार से 22 कदम नीचे उतारा गया। यह विधि ‘बाइसी पहाचा’ कहलाती है। सिंह द्वार से बाहर लाने की रस्म को ‘पहंदी’ कहते हैं। इस दौरान श्रद्धालुओं और सेवायतों के बीच भगवान के दर्शन करने और उनके चरण स्पर्श करने की मानो होड़ मच गई।
भक्ति संगीत की स्वर लहरियों, घंटियों और शंखनाद के बीच तीनों प्रतिमाओं को एक एक कदम बढ़ाते हुए रथ पर बिठाया गया था। इस तरह पहंदी की रस्म संपन्न हुई। सबसे पहले भगवान कृष्ण-विष्णु का सुदर्शन चक्र सुभद्रा के रथ पर रखा गया। फिर उसे भगवान बलभद्र और फिर जगन्नाथ के रथ पर रखा गया। तीनों प्रतिमाओं को नौ दिवसीय प्रवास पर गुंडिचा मंदिर तक ले जाने के लिए पूरी तरह सजे हुए तीन रथ मंदिर के बाहर तैयार थे। यह मंदिर जगन्नाथ मंदिर से करीब दो किमी दूर है।
भगवान जगन्नाथ का रथ 45 फुट उंचा था और इसका नाम ‘नंदीघोष’ था। इसमें लकड़ी के 16 पहिये लगे थे। 44 फुट उंचा और 14 पहियों वाला रथ ‘तालध्वजा’ बलभद्र का और 43 फुट उंचा 12 पहियों वाला रथ ‘दर्पदलन’ सुभद्रा का था। रथ महोत्सव देखने वालों में आम आदमी और अतिविशिष्ट व्यक्ति दोनों ही शामिल थे। सड़कों के दोनों ओर बनी इमारतों में लोगों की भीड़ जमा थी। तेज गर्मी और फिर बाद में हुई बारिश भी श्रद्धालुओं को ‘बड़ा डंडा’ में एकजुट होने से नहीं रोक पाई।
हर रथ के आसपास सुरक्षा का घेरा बना हुआ था और पुलिस कर्मियों को भीड़ को काबू करने में खासी दिक्कत हुई। 23 जून को ‘स्नान पूर्णिमा’ पर भव्य स्नान करने के बाद मंदिर बंद कर दिया गया था और देव प्रतिमाएं ‘अंसारा पिंडी’ में थीं। इसके बाद 8 जुलाई को ‘नव जुआबना दर्शन’ के लिए मंदिर खोला गया था। (एजेंसी)
First Published: Thursday, July 11, 2013, 00:02