बचपन का मोटापा बीमारियों का कारण - Zee News हिंदी

बचपन का मोटापा बीमारियों का कारण

नई दिल्ली: गोल मटोल बच्चे देखने में भले ही अच्छे लगते हों, लेकिन बचपन में मोटापा आगे जाकर मधुमेह और हदय संबंधी कई बीमारियों का कारण बन सकता है।

 

डायरेक्टर ऑफ मिनिमल एसेसीत, मेटाबॉलिक एवं बैरिएटिक सर्जन डॉ अतुल पीटर्स ने कहा कि बच्चों में बढ़ते मोटापे के पीछे फास्ट फूड कल्चर, शारीरिक गतिविधियों का कम होना जैसे कई कारण जिम्मेदार हैं और यह आगे जाकर कई बीमारियों का सबब बन सकता है।

 

उन्होंने कहा, ‘बचपन में जिन बच्चों का वजन ज्यादा हो, उनमें बड़े होकर मधुमेह, हदय संबंधी रोगों, गुर्दो की बीमारियों का खतरा ज्यादा रहता है। साथ ही उनमें भविष्य में नींद न आने, कैंसर, अधिक वजन के कारण जोड़ों पर पड़ने वाले दबाव से होने वाली समस्याओं की आशंका भी अधिक रहती है।’

 

 

उन्होंने कहा कि बच्चों में मोटापा बढ़ने के लिए कई कारण जिम्मेदार है, जिनमें फास्ट फूड कल्चर के कारण खाद्य पदाथरें में वसा आदि का बढ़ना, शारीरिक गतिविधियों का कम होना शामिल हैं।

 

डॉ पीटर्स ने कहा, ‘आजकल बच्चों का पैदल चलना कम हो पाता है। अधिकतर बच्चे स्कूल जाने के लिए बस, टैक्सी या अपनी गाड़ी से स्कूल जाते हैं। इसी तरह घूमने जाना हो तो मॉल या सिनेमा तक भी गाड़ी से जाया जाता है। ऐसे में चलने का कोई कारण नहीं रह जाता। माता-पिता भी सुरक्षा कारणों से अपने लाडलों को स्कूल या दोस्तों के घर पैदल भेजना पसंद नहीं करते।

 

इस संबंध में डॉ अर्चना धवन ने कहा कि पहले की और आज की जीवनशैली में काफी बदलाव आ गया है जिस कारण बच्चों में वजन बढ़ने के मामले ज्यादा देखे जा रहे हैं।

 

डॉ अर्चना कहा, ‘एक ओर जहां बच्चे खाद्य पदाथरें के रूप में जंक फूड, चॉकलेट और ज्यादा वसा युक्त चीजंे ज्यादा ले रहे हैं वहीं उनमें खेलकूद की प्रवृत्ति कम होती जा रही है। दूसरी ओर माता-पिता दोनों के कामकाजी होने से बाहर खाना खाने का चलन भी बढ़ा है।

 

डॉ अर्चना कहा, ‘ पहले के बच्चे दौड़ भाग वाले खेल ज्यादा खेलते थे लेकिन आज कल उनके पास टीवी, कंप्यूटर, लैपटॉप मोबाइल गेम के विकल्प मौजूद हैं। अब बच्चों का अधिकांश समय पढ़ाई आदि में बीतता है और बाकी का समय कंप्यूटर आदि के सामने, जिससे ज्यादा शारीरिक श्रम नहीं हो पाता है और बच्चों में मोटापा बढ़ता जाता है।’

 

डॉ पीटर्स ने कहा कि अधिक वजन के बच्चों में से करीब 70 प्रतिशत का वजन युवावस्था में भी ज्यादा ही रहता है।

 

उन्होंने कहा, ‘‘कुछ लोग समझते हैं कि यदि बच्चा अभी मोटा है तो क्या हुआ आगे जाकर वजन कम हो जाएगा। लेकिन अधिक वजन के करीब 70 प्रतिशत बच्चों का वजन युवावस्था में भी कम नहीं होता।’’ डॉ पीटर्स ने कहा कि बच्चों को भविष्य में कई बीमारियों से बचाने के लिए आज उनके वजन पर नियंत्रण की दिशा में कदम उठाए जाने बहुत जरूरी हैं। (एजेंसी)

First Published: Thursday, November 17, 2011, 12:08

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