Last Updated: Monday, March 3, 2014, 17:48
नई दिल्ली : सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के अटके ऋणों (एनपीए) में वृद्धि का बड़ा करण मुद्रास्फीति और आर्थिक नरमी बताया जा रहा है पर उद्योग, व्यापार और बैंकिंग क्षेत्र के विशेषज्ञों ने विकट हो रही इस समस्या से निपटने के लिए बैंकों में शीर्ष स्तर पर जवाबदेही तय करने पर बल दिया है। पीएचडी वाणिज्य एवं उद्योग मंडल के अध्यक्ष शरद जयपुरिया ने इस बारे में कहा, ‘मुद्रास्फीति, उंचा ब्याज तथा दूसरी लागतें बढ़ने की वजह से अर्थव्यवस्था की गति धीमी पड़ी है जिससे बैंकों के कर्जे फंसे हैं।
जयपुरिया ने कहा कि पिछले दो साल के दौरान विभिन्न कारणों से बिजली, बंदरगाह, खनन और सड़क क्षेत्र में करीब 13-14 लाख करोड़ रुपये मूल्य की परियोजनाओं पर काम रूक गया। इनमें से कई परियोजनाओं के लिये कर्ज जारी हो चुका था पर परियोजनाओं का काम बीच में रूक गया। नेशनल आर्गनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स (एनओबीडब्ल्यू) के उपाध्यक्ष अश्विनी राणा ने कहा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में एनपीए बढ़ने की बैंकों के शीर्ष स्तर पर जवाबदेही तय होनी चाहिये। उन्होंने कहा, सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंक सरकारी स्वामित्व वाले हैं, इनमें निदेशक मंडल में सरकारी प्रतिनिधि ही शामिल हैं, ऐसे में एनपीए बढ़ने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की बनती है। इसलिये शीर्ष स्तर पर जवाबदेही तय होनी चाहिये।
भारतीय कंपनी सचिव संस्थान (आईसीएसआई) के पूर्व अध्यक्ष निसार अहमद ने भी कहा कि इस मामले में बेहतर जोखिम प्रबंधन और जवाबदेही तय किये जाने की आवश्यकता है। बैंकों के कर्ज और उसकी गुणवत्ता की निगरानी के लिये स्वतंत्र विशेषज्ञों का एक प्रकोष्ठ गठित होना चाहिये। नियामक द्वारा बनाये गये नियमों के अमल में ढिलाई बरते जाने की जवाबदेही तय होनी चाहिये। एनओबीडब्ल्यू के राणा ने कहा कि बैंकों पर नित नये काम का बोझ डाला जा रहा है, जबकि बैंकों में स्टाफ की भारी तंगी है। कुछ बैंक शाखायें तो ऐसी हैं जहां केवल एक मैनेजर और एक क्लर्क है। ऐसे में वह बैंक का काम देखेंगे कि वसूली करेंगे। सरकारी नीतियों के चलते रीएल एस्टेट, बिजली कंपनियों और एयरलाइंस जैसे क्षेत्रों में बैंकों का काफी धन फंस गया है और एनपीए ढाई लाख करोड़ रुपए के करीब पहुंच गया है।
हालांकि, वित्त मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने इस मामले में सरकारी स्तर पर ढिलाई बरते जाने से इनकार करते हुये कहा कि सरकार यदि किसी क्षेत्र विशेष को कोई राहत देती है तो उससे बैंक को होने वाले नुकसान की भरपाई का प्रावधान भी करती है। सरकार की तरफ से बैंकों के दैनिक कामकाज में किसी तरह का कोई हस्तक्षेप नहीं है। जहां तक बड़ी परियोजनाओं के लटके होने की बात है, प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की निवेश समिति (सीसीआई) ने 6,00,000 करोड़ रुपये की 296 परियोजनाओं को मंजूरी दी है। इन पर काम आगे बढ़ा है।
प्रवक्ता ने बैंकों में एनपीए बढ़ने की वजह पर कहा कि कुछ मामलों में बैंकों के स्तर पर परियोजना के विश्लेषण, आकलन में कमी इसकी वजह हो सकती है, दिये गये कर्ज के बदले उपयुक्त सुरक्षा उपाय और गारंटी ली जानी चाहिये। देश का बैंकिंग उद्योग विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एनपीए पिछली कुछ तिमाहियों से तेजी से बढ़ा है। पिछले साल अंत तक इन बैंकों का सकल एनपीए ढाई लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाने का अनुमान है। भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक जैसे बड़े बैंकों का एनपीए भी तेजी से बढ़ा है।
एनपीए में अचानक वृद्धि के बीच पिछले महीने ही सार्वजनिक क्षेत्र के यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया की सीएमडी अर्चना भार्गव को पद छोड़ना पड़ा। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सकल एनपीए 31 मार्च 2013 को 1,79,891 करोड़ रपये से बढ़ता हुआ 30 सितंबर 2013 तक बढ़ता हुआ 2,29,007 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। निजी क्षेत्र के बैंकों की तुलना में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एनपीए काफी उंचा है।
निजी क्षेत्र के बैंकों का एनपीए कम रहने के बारे में पूछे जाने पर जयपुरिया ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक बड़ी परियोजनाओं के लिये काफी धन उपलब्ध कराते हैं जबकि निजी क्षेत्र और विदेशी बैंकों का ज्यादा जोर खुदरा कर्ज, आवास और वाहन रिण पर रहता है। (एजेंसी)
First Published: Monday, March 3, 2014, 17:48