Last Updated: Sunday, February 9, 2014, 19:35
नई दिल्ली : देशभर में फर्जी सामूहिक निवेश गतिविधियों पर अंकुश लगाए जाने के अभियान के बीच बाजार नियामक सेबी की नजर में कई ऐसे बड़े मामले आए हैं जहां निवेशकों को सोने से संबद्ध बांड स्कीमों की ओर लुभाया जा रहा है।
हालांकि, इस तरह की ज्यादातर स्कीमों के लिए नियमन के संबंध में स्पष्टता की कमी के चलते सेबी के लिए उनके संचालकों के खिलाफ कार्रवाई करने में मुश्किलें आ रही हैं जिसकी वजह से सेबी इन मामलों में रिजर्व बैंक सहित अन्य नियामकों व सरकारी विभागों से मदद ले रहा है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सेबी को ज्यादातर गोल्ड-लिंक्ड धन संग्रह मामलों को आरबीआई के सुपुर्द करना पड़ सकता है क्योंकि बैंकों व पंजीकृत एनबीएफसी द्वारा ‘गोल्ड डिपाजिट स्कीमों’ का नियमन आरबीआई करता है। हालांकि, उन इकाइयों जो न ही बैंक हैं और न ही एनबीएफसी हैं, द्वारा गोल्ड बांड स्कीम की पेशकश के संबंध में समस्याएं अधिक जटिल हैं।
उदाहरण के तौर पर, कई आभूषण विनिर्माताओं एवं सर्राफा कारोबार में लगी अन्य इकाइयों ने विभिन्न स्कीमें शुरू की हैं जिसमें ग्राहकों को किस्तों में भुगतान करने एवं बाद की तिथि पर सोने की डिलीवरी लेने की अनुमति दी जा रही है। जहां कई स्कीमें विशुद्ध रूप से खरीद.बिक्री गतिविधियां प्रतीत होती हैं जिसमें धन का भुगतान सोने की वास्तविक डिलीवरी होने पर किया जा रहा है, कई ऐसे मामले भी हैं जहां कुछ बांड जारी किए जा रहे हैं जिससे वे प्रतिभूति बाजार के सौदे बन जाते हैं।
इन स्कीमों में निवेशकों को प्रति माह 100 रपये से लेकर 1,000 रपये का भुगतान करने को कहा जाता है और उन्हें एक साल या इससे समय बाद सोने के मूल्य में वृद्धि से संबद्ध रिटर्न देने का वादा किया जाता है। (एजेंसी)
First Published: Sunday, February 9, 2014, 19:35