Last Updated: Tuesday, October 15, 2013, 13:47
क्राइम रिपोर्टर/ज़ी मीडिया आसाराम के छल और फरेब के शिकार हुए लोगों में वृंदावन के एक संत का भी नाम है। इस संत के साथ आसाराम ने कैसे किया विश्वासघात, क्राइम रिपोर्टर ने खुलासा किया है कि वृंदावन में संत का जीवन बिताने वाले मोहन प्रसाद साढ़े चार साल से भटक रहे हैं।
आसाराम के एक आश्रम से दूसरे आश्रम तक मन में एक ही चाहत है कि किसी तरह आसाराम से मुलाकात हो जाये लेकिन मोहन प्रसाद जितना उनसे मिलने की कोशिश करते रहे आसाराम इनसे उतना ही दूर भागते रहे। मोहन प्रसाद आसाराम से मिलने के लिए एक समागम से दूसरे समागम तक जाते रहे लेकिन वहां भी उन्हें अंदर जाने की इजाजत नहीं मिलती। ऐसे में बडा सवाल यह उठता है कि आखिर एक संत 4 साल से आसाराम के पीछे क्यों पड़ा है?
आसाराम संत से बचकर क्यों भाग रहे हैं ?आसाराम के सेवादर संत के साथ क्यों करते हैं मारपीट? दरअसल मोहन प्रसाद को तलाश है अपनी पत्नी रमादेवी की। उनका कहना है कि रमादेवी को 2009 में आसाराम के मोटेरा आश्रम से गायब कर दिया गया और तब से ही वो अलग अलग आश्रमों में जाकर आसाराम से मिलने की कोशिश कर रहे हैं। आसाराम का ऐसा ही एक समागम था जब वृंदावन में रहने वाले मोहन प्रसाद ने पहली बार आसाराम के मुंह से राम की कथा सुनी थी। वृंदावन में पत्नी रमादेवी के साथ संतों जैसी जिंदगी जीने वाले खुद मोहन प्रसाद के दिलोदिमाग में आसाराम की ऐसी छवि बनी कि हजारों लोगों की तरह वो भी उनके मुरीद बन गए।
आसाराम पर विश्वास इस कदर मजबूत हुआ कि 9 फरवरी, 2009 को ये पत्नी रमादेवी को साथ लेकर अहमदाबाद में आसाराम के मोटेरा आश्रम जा पहुंचे। बस वो दिन था और ये आज का दिन है, साढ़े चार साल का लंबा वक्त गुजर चुका है, लेकिन अब तक मोहन प्रसाद को ये नहीं मालूम कि उनकी पत्नी कहां हैं। उस दिन वो आसाराम के आश्रम के अंदर गईं तो फिर कभी बाहर नहीं आईं। आश्रम में उनके साथ क्या हुआ, ये सोच-सोचकर ही मोहन प्रसाद का दिल भर आता है, लेकिन आश्रम में कोई इनको ये बताने को तैयार नहीं है कि इनकी पत्नी आखिर हैं कहां?
मोहन प्रसाद के मुताबिक वो आश्रम के वैद्यों से अपनी पत्नी का इलाज करवाना चाहते थे, लेकिन साधकों ने रमादेवी के स्त्री होने का हवाला देकर उन्हें एक अलग आश्रम में भेज दिया। आधे घंटे बाद जब ये पत्नी को लेने आश्रम के गेट पर पहुंचे तो रमादेवी का कहीं कोई अता-पता नहीं था। आठ-दस घंटे के इंतजार के बाद भी जब रमादेवी नहीं मिली तो ये अहमदाबाद पुलिस के पास पहुंचे। काफी दौड़-भाग के बाद पुलिस ने केस तो दर्ज कर लिया, लेकिन साढ़े चार साल बाद भी पुलिस रमा देवी का पता नहीं लगा सकी है।
बड़ा सवाल यह है कि भगवा पहनने वाले एक शख्स के लिए आसाराम से मिलना इतना मुश्किल क्यों हो गया है और वो भी अभी तक मोहन प्रसाद से क्यों नहीं मिला? हर बार उन्हें मारपीट कर आश्रम के बाहर से ही क्यों भगा दिया गया? आखिर क्या है इस मामले का सच। आसाराम अपने भक्तों से खुलकर मिलते हैं, प्रवचन सुनाते हैं, आशीर्वाद देते हैं, लेकिन साढ़े चार सालों में मोहन प्रसाद ने आसाराम से मिलने की हर कोशिश करके देख ली लेकिन समागमों में भी उनको आसाराम से नहीं मिलने दिया गया, उल्टा कई बार उन्हें मारपीट करके वहां से भगा दिया गया।
क्या आश्रम के सेवादारों ने उन्हें किसी के कहने पर वहां से गायब किया। सवाल ये भी है कि इस मामले में आज तक अहमदाबाद पुलिस ने आसाराम और उनके सेवादारों से कोई पूछताछ क्यों नहीं की? कहीं ऐसा तो नहीं कि इस मामले के पीछे भी आसाराम का कोई स्याह सच छिपा है। अगर वो स्याह सच वक्त रहते सामने आ गया होता तो शायद आसाराम पर लगे संगीन इल्जामों की फेहरिस्त इतनी लंबी नहीं होती। एक वक्त था जब मोहन प्रसाद आसाराम पर आंख मूद कर भरोसा करते, लेकिन आज इनकी आंखों पर पड़ा पर्दा हट चुका है और सामने आ चुकी है, आसाराम और उनके आश्रमों की स्याह हकीकत। और अब वो हर हाल में आसाराम के राज का पर्दाफाश कर उन्हें बेनकाब करने की कोशिश में लगे हैं।
अपनी पत्नी की तलाश के लिए मोहन ने हर संभव कोशिश की। उम्र के इस दौर में भी उनका हौसला कम नहीं हुआ है। आज भी वे आसाराम का पीछा करने के साथ ही पुलिस प्रशासन के पास भी लगातार दौड़-भाग कर रहे हैं।
बड़े-बड़े आश्रमों में फैले आसाराम के साम्राज्य को चुनौती देना कोई आसान बात नहीं और शायद इसीलिए मोहन प्रसाद की आवाज आश्रमों की चारदीवारी को पारकर अदर तक नहीं पहुंच सकी। एक तरफ उन्हें आसाराम और उनके सेवादारों से मायूसी मिली तो दूसरी तरफ गुजरात पुलिस के रवैये ने भी इन्हें पूरी तरह निराश किया.मोहन प्रसाद का आरोप है कि पुलिस ने गुमशुदगी का मामला तो दर्ज कर लिया, लेकिन रमादेवी को तलाशने की जहमत नहीं उठाई। इसके बावजूद मोहन प्रसाद ने हार नहीं मानी। ये खुद अपने दम पर पत्नी की तलाश में जुटे रहे।
मोहन प्रसाद ने पत्नी की गुमशुदगी के पांच लाख पर्चे छपवा कर गुजरात के अलग-अलग जिलों में उन्हें बांटा। इतना ही नहीं, इन्होंने 12 दिनों तक आसाराम के मोटेरा आश्रम के सामने भूख हड़ताल भी की धरना दिया लेकिन ना ही आश्रम से कोई जवाब मिला और ना ही पुलिस और प्रशासन से इनको किसी तरह का सहयोग मिला। महिला आयोग ने गुजरात सरकार को चिट्ठी लिखकर पूरे मामले की जांच का निर्देश भी दिया, इसके बावजूद रमादेवी की गुमशुदगी का मामला जहां का तहां अटका है। लेकिन मोहन प्रसाद ने अब भी हार नहीं मानी है, उनका कहना है जब तक सांस रहेगी तब तक वो अपनी कोशिश जारी रखेंगे।
First Published: Tuesday, October 15, 2013, 13:47