सेंसर बोर्ड को फिल्मी गीतों को प्रमाणित करना चाहिए: समिति

सेंसर बोर्ड को फिल्मी गीतों को प्रमाणित करना चाहिए: समिति

नई दिल्ली : सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से गठित एक विशेषज्ञ समिति ने सिफारिश की है कि सेंसर बोर्ड को फिल्मी गीतों को भी प्रमाणित करना चाहिए। सूत्रों के अनुसार समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश समाज के कुछ तबकों में ‘आइटम सांग’ की शब्दावली को लेकर गुस्से पर संज्ञान लेने के बाद की गई है। मंत्रालय ने इस समिति का गठन सेंसर बोर्ड के कामकाज की समीक्षा के मकसद से किया था।

एक सूत्र ने बताया, समिति ने सिफारिश की है कि ऐसे गीतों के दृश्य और बोल को प्रमाणित किया जाना चाहिए। छानबीन के दायरे में गीतों को भी शामिल किया जाना चाहिए। सूत्रों ने कहा कहा कि यह भी सुझाव दिया गया है कि सिनेमैटोग्राफ कानून में फिल्म के संदर्भ में दी गई परिभाषा को बदला जाना चाहिए और विशेष तौर पर यह बदलाव गीतों तथा विज्ञापन सामग्री के संदर्भ में होना चाहिए।

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति :सेवानिवृत्त: मुकुल मुदगल की अध्यक्षता वाली इस समिति ने कहा कि 1952 के सिनेमैटोग्राफ कानून के अमल में आने के समय देश में कुछ सिनेमा हॉल थे, लेकिन अब सिनेमा के माध्यम में व्यापक स्तर पर बदलाव आ गया है।

समिति ने कहा कि अतीत में किसी भी फिल्म का सफल प्रदर्शन होना एकमात्र प्रयास होता था। परंतु अब फिल्म के समानांतर कई दूसरी चीजें भी होती हैं और इनमें फिल्मी गानों का ‘ऑडियो रिलीज’ भी शामिल है। सूत्रों के अनुसार समिति ने कहा कि फिल्मों के प्रदर्शन को मंजूरी देना केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में है और उसने सुझाव दिया कि सिनेमैटोग्राफ कानून में ऐसे प्रावधान किए जाने चाहिए जिससे स्पष्ट हो जाए कि राज्य सरकारें फिल्मों का प्रदर्शन रोकने के संदर्भ में आदेश नहीं दे सकें।

समिति ने कहा कि अगर फिल्मों के प्रदर्शन के निलंबन से जुड़ी कोई कार्रवाई करने से पहले निर्माता को कारण बताओ नाटिस जारी किया जाना चाहिए और फिल्म प्रमाणन अपीलीय न्यायाधीकरण में प्रमाणित फिल्म के खिलाफ आदेश को अपील करने योग्य बनाना चाहिए। (एजेंसी)

First Published: Sunday, October 13, 2013, 14:50

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