Last Updated: Sunday, February 2, 2014, 16:19
नई दिल्ली : राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के निवर्तमान अध्यक्ष वजाहत हबीबुल्ला ने कहा है कि 1984 में सिख विरोधी दंगों के समय सरकार ध्वस्त हो गई थी और हिंसा उसकी ‘बहुत बड़ी नाकामी’ थी। हबीबुल्ला ने उन आरोपों को खारिज कर दिया कि कांग्रेस सरकार हिंसा में शामिल थी। वह दंगों के समय प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में बतौर अधिकारी कार्यरत थे।
उन्होंने से कहा, ‘‘1984 में भारत सरकार ध्वस्त हो गई थी। प्रधानमंत्री (इंदिरा गांधी) की हत्या कर दी गई थी। वह मजबूत प्रधानमंत्री थीं। पीएमओ निष्क्रिय हो गया था। सरकार कामकाज नहीं कर रही थी।.. यह (दंगा) सरकार की बहुत बड़ी नाकामी थी। परंतु इसका एक कारण था। ऐसा नहीं है कि सिखों की हत्या को लेकर कोई साजिश रच रहा था।’’ हबीबुल्ला ने कहा कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद केंद्र सरकार इस तरह से अव्यवस्थित थी कि पीएमओ में सबसे वरिष्ठ अधिकारी के तौर पर वह रह गए थे क्योंकि दूसरे अधिकारी अंतिम संस्कार की तैयारियों में लगे हुए थे। उन्होंने कहा कि सरकार में बैठे कुछ लोग ही राजधानी में दंगा भड़कने की आशंका को भांप पाए। यह पूछे जाने पर कि तत्कालीन सरकार ने दंगे को बढ़ाने का काम किया जैसा कि भाजपा और सिंख संगठन आरोप लगाते हैं तो हबीबुल्ला ने कहा, ‘‘बिल्कुल नहीं।’’
इस सवाल पर कि दंगों में कांग्रेस नेताओं की सांगगांठ थी, हबीबुल्ला ने कहा, ‘‘यह हो सकता है कि लोगों ने कानून को अपने हाथ में लिया होगा, लेकिन सरकार के स्तर से सिख समुदाय से कोई बदला लेने की कोशिश नहीं थी। बिल्कुल नहीं।’’ उन्होंने कहा कि राजीव गांधी की पहली चिंता थी कि ‘मेरी मां को क्या हुआ’ और जब सरकार ने हिंसा से जुड़ी हकीकत को समझा तो उस पर काबू करना शुरू कर दिया।
हबीबुल्ला ने कहा, ‘‘सूचना नहीं आ रही थी। ऐसा हो सकता है कि स्थानीय पुलिस, स्थानीय नेता और दूसरे लोग शामिल रहे हों, क्योंकि एक बेहद लोकप्रिय प्रधानमंत्री की हत्या की गई थी। यह संभव है कि चीजें आरंभ हुई होंगी और हम नहीं जान पाए। हमने सोचा कि यह सामान्य है और पुलिस कार्रवाई करेगी।’’ उन्होंने कहा कि सरकार को हिंसा भांप लेनी चाहिए थी और पुलिस बल की पूरी तैनाती की जानी चाहिए। उस वक्त प्रधानमंत्री आवास पर पुलिस बलों की तैनाती थी क्योंकि बड़ी संख्या में लोग वहां थे।
हबीबुल्ला ने 2002 और 1984 के बीच दंगों के फर्क करते हुए कहा कि सिख विरोधी दंगों के समय सरकार ध्वस्त हो गई थी तो ‘उसके अपने उचित कारण थे’, लेकिन 2002 में सरकार के ध्वस्त हो जाने का कोई प्रमाण नहीं है।
यह पूछे जाने पर कि आयोग के प्रमुख के तौर पर वह मानते हैं कि मोदी सरकार ने दंगाइयों को उकसाने काम किया, तो हबीबुल्ला ने कहा कि वह इससे इंकार नहीं कर सकते। उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा आरोप लगाया जाता है और मैं इससे इंकार नहीं कर सकता। मैं यह नहीं कह सकता कि इसकी संभावना नहीं है। बहुत जगहों से जो बातें सुनी गई है, यह आकलन उसी आधार पर है।..हम इस मामले पर यहां (आयोग) वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की सुनवाई की गई।
हबीबुल्ला ने कहा, हम सभी इस सच्चाई को जानते हैं कि मुख्यमंत्री (मोदी) उस वक्त बैठकें कर रहे थे। उन बैठकों पर क्या चर्चा की गई, यह आकलन का विषय हो सकता है, लेकिन बैठक हुई थी।.. दिल्ली में किस तरह की बैठक हुई थी। कुछ नहीं।उन्होंने कहा कि गुजरात की एक कैबिनेट मंत्री भी दंगों के मामले में दोषी करार दी गईं। (एजेंसी)
First Published: Sunday, February 2, 2014, 16:19