Last Updated: Monday, January 6, 2014, 18:41
ज़ी मीडिया ब्यूरो नई दिल्ली/कोलकाता : दिसम्बर 2012 में एक कानून प्रशिक्षु से यौन दुर्व्यवहार के आरोपी सर्वोच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश ए.के.गांगुली ने सोमवार को डब्ल्यूबीएचआरसी के प्रमुख पद से इस्तीफा दे दिया। गांगुली ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल से मिलकर उन्हें अपना इस्तीफा सौंपा। इससे पहले आज इस मामले में सरकार को कार्रवाई करने से रोकने के लिए दायर की गई याचिका को सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दी थी।
डॉ.पद्म नारायण सिंह की याचिका खारिज करते हुए प्रधान न्यायाधीश पी.सतशिवम ने कहा कि हमने आपकी याचिका के हर शब्द को पढ़ा है। हम इस बारे में कुछ कहने नहीं जा रहे हैं। इस बारे में हम कोई राय नहीं प्रकट करना चाहते हैं, क्योंकि इससे संबंधित पक्ष प्रभावित हो सकते हैं। यह अभी जल्दबाजी होगी। प्रधान न्यायाधीश सतशिवम ने कहा कि इस स्थिति में हस्तक्षेप करने का यह मामला नहीं है। हम इसे खारिज करते हैं। इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने वकील उदय गुप्ता द्वारा दायर एक अन्य याचिका को भी खारिज कर दिया। गुप्ता ने अदालत से अवकाश प्राप्त न्यायाधीशों के आचरण के लिए नियम बनाने का आग्रह किया था। न्यायालय ने कहा कि यदि आप वास्तव में ऐसा चाहते हैं तो आपको अपना आवेदन सरकार के पास देना चाहिए। गुप्ता की याचिका को स्वीकार करने से इंकार करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि वह दोनों याचिकाओं को खारिज करते हैं। कानून को अपना कार्य करने दीजिए।
सुप्रीम कोर्ट ने उन जनहित याचिकाओं को खारिज कर दिया है, जिनमें यौन उत्पीड़न के आरोपों की पृष्ठभूमि में डब्ल्यूबीएचआरसी प्रमुख के तौर पर पूर्व न्यायाधीश एके गांगुली को हटाने के केंद्र के किसी भी प्रयास पर रोक लगाने की मांग की गई थी। इस पीआईएल में गांगुली के खिलाफ किसी सरकारी कार्रवाई को लेकर रोक की मांग की गई थी।
गौर हो कि कानून की इंटर्न के कथित यौन उत्पीड़न के आरोप में पूर्व न्यायाधीश एके गांगुली को पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से हटाने को कोई भी प्रयास करने से केंद्र सरकार को रोकने को लेकर शीर्ष अदालत में एक याचिका दो दिन पहले दायर की गई थी, जिस पर सोमवार को सुनवाई निर्धारित की गई थी। प्रधान न्यायाधीश पी. सदाशिवम की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष इस याचिका का दो दिन पहले उल्लेख किया गया। जिसके बाद न्यायालय ने इस याचिका पर 6 जनवरी को सुनवाई का तारीख निर्धारित की थी। यह याचिका दिल्ली निवासी एम पद्मा नारायण सिंह ने दायर की, जो पेशे से डाक्टर हैं। याचिका में उस शिकायत को भी निरस्त करने का अनुरोध किया गया था जिसके आधार पर शीर्ष अदालत के तीन न्यायाधीश की समिति ने कहा था कि माहिला इंटर्न के प्रति न्यायमूर्ति गांगुली का व्यवहार अशोभनीय था। याचिकाकर्ता वरिष्ठ नागरिक भी है। उन्होंने याचिका में आरोप लगाया कि गांगुली साजिश के शिकार हुए हैं क्योंकि वह कोलकाता के प्रमुख फुटबाल क्लब और आल इंडिया फुटबाल फेडरेशन के बीच विवाद में आर्बीट्रेटर थे और इंटर्न ने भी इसमें हिस्सा लिया था। याचिका में अतिरिक्त सालिसीटर जनरल इन्दिरा जयसिंह को भी प्रतिवादी बनाते हुए उन पर न्यायमूर्ति गांगुली को गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार कराने के सतत् प्रयास करने का आरोप लगाया गया। याचिका में न्यायमूर्ति गांगुली को मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से हटाने की मांग करने के कारण नेताओं की भी आलोचना की गई। याचिका में दलील दी गई कि गांगुली का कृत्य यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं आता है क्योंकि यौन उत्पीड़न कानून 2013 के तहत इस तरह की शिकायत तीन महीने के भीतर ही की जा सकती है लेकिन इस मामले में इसका अनुपालन नहीं किया गया।
उधर, कानून की एक इंटर्न द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों का सामना कर रहे उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एके गांगुली ने आज कहा कि उन्होंने पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बारे में अभी तक फैसला नहीं किया है। हालांकि, उन्होंने पूर्व अटार्नी जनरल सोली सोराबजी के साथ टेलीफोन पर हुई अपनी बातचीत के बारे में टिप्पणी करने से इंकार कर दिया।
सोराबजी ने कल कहा था कि न्यायमूर्ति गांगुली ने उन्हें टेलीफोन किया और कहा कि वह पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग (डब्ल्यूबीएचआरसी) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की सोच रहे हैं। न्यायमूर्ति गांगुली ने कहा कि मैंने इसके बारे में अखबारों में पढ़ा है। मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं। यह पूछे जाने पर कि क्या वह इस्तीफा देने पर विचार कर रहे हैं, गांगुली ने कहा कि मैंने अभी तक कुछ भी तय नहीं किया है। न्यायमूर्ति गांगुली की सोराबजी के साथ वार्ता ऐसे समय में हुई है जब केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा इस मुद्दे पर यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए राष्ट्रपति की राय :केंद्र सरकार की तरफ से राष्ट्रपति द्वारा राय के लिए उच्चतम न्यायालय को भेजा जाने वाला मामला भेजने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। इसे डब्ल्यूबीएचआरसी अध्यक्ष को हटाने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है। उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यीय समिति ने प्रथमदृष्टया न्यायमूर्ति गांगुली को आरोपी माना था।
न्यायमूर्ति गांगुली ने कानून की इंटर्न की ओर से लगाए गए सभी आरोपों से इनकार किया था और कहा था कि उनके द्वारा दिए गए कुछ फैसलों के कारण उनकी छवि धूमिल करने के लिए कुछ ताकतें कोशिश कर रही हैं।
First Published: Monday, January 6, 2014, 13:19