Last Updated: Monday, January 27, 2014, 18:21
नई दिल्ली : इंटरनेट सेवा प्रदाताओं ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि उनके लिए अदालत और सरकार के आदेश के बगैर अश्लील साइट्स पर बंदिश लगाना व्यावहारिक और तकनीकी दृष्टि से संभव नहीं है। इन प्रदाताओं का कहना है कि इन साइट्स पर आपत्तिजनक सामग्री मौजूद होने के लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।
अश्लील सामग्री उपलब्ध कराने वाली इन वेबसाइट्स को देश में ब्लाक करने के लिए शीर्ष अदालत में इंदौर निवासी कमलेश वासवानी द्वारा दायर जनहित याचिका पर अपने जवाब में इंटरनेट सेवा प्रदाता एसोसिएशन ने कहा कि पोर्नोग्राफिक शब्द को परिभाषित करने की जरूरत है क्योंकि इसकी सीमाएं ‘अस्पष्ट’ हैं।
इस बीच, न्यायमूर्ति बी एस चौहान की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने दूरसंचार विभाग को यह बताने के लिये तीन सप्ताह का और समय दिया है कि अश्लील सामग्री वाली इन वेबसाइट्स को देश में किस तरह ब्लाक किया जा सकता है। इंटरनेट सेवा प्रदाताओं की एसोसिएशन का कहना है कि अदालत के आदेश या दूरसंचार विभाग के निर्देश के बगैर इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के लिए इन साइट्स को खुद ही ब्लॉक करना कानूनी, तकनीकी या फिर व्यावहारिक दृष्टि से संभव नहीं है।
इस संगठन ने न्यायालय में कहा है कि पोर्नोग्राफी के बारे में कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है और इसकी सीमायें भी अस्पष्ट हैं। एसोसिएशन ने सवाल किया है कि मेडिकल या एड्स के प्रति जागरूकता पैदा करने वाली वेबसाइट्स को क्या पोर्नोग्राफी माना जाएगा? खजुराहो के चित्रों को किस श्रेणी में रखा जाएगा? एसोसिएशन के अनुसार एक व्यक्ति की पोर्नोग्राफी दूसरे व्यक्ति के लिए उच्च कोटि की कला हो सकती है।
इससे पहले, केन्द्र सरकार ने भी न्यायालय को सूचित किया था कि देश में अंतरराष्ट्रीय पोर्न साइट्स ब्लाक करना मुश्किल काम है। केन्द्र ने इस समस्या का हल खोजने के लिए विभिन्न मंत्रालयों से परामर्श के लिए कुछ समय मांगा था। (एजेंसी)
First Published: Monday, January 27, 2014, 18:21